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नवरात्रि 2018: दूसरे दिन करें मां के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा

नवरात्र में देवी के नौ स्वरूपों की पूजा होती है जिसमें से दूसरे दिन उनके ब्रह्मचारिणी रूप का पूजन कैसे करें आैर उसका क्या महत्व है ये जानें पंडित दीपक पांडे से।

By Molly SethEdited By: Published: Thu, 11 Oct 2018 10:55 AM (IST)Updated: Thu, 11 Oct 2018 04:38 PM (IST)
नवरात्रि 2018: दूसरे दिन करें मां के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा
नवरात्रि 2018: दूसरे दिन करें मां के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा

कौन हैं माता ब्रह्मचारिणी 

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मां दुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरूप को भी पर्वतराज हिमालय की पुत्री ही माना जाता है। ब्रह्मचारिणी का अर्थ होता है तप का आचरण करने वाली। शंकर जी को पति रूप में पाने की आकांक्षा से इन्होंने जो घोर तप किया उसी के कारण ये देवी ब्रह्मचारिणी कहलार्इं। मां ब्रह्मचारिणी के दाएं हाथ में जप की माला और बाएं हाथ में कमण्डल शोभायमान है। एेसी धारणा है कि मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से ज्ञान और वैराग्य की प्राप्ति होती है। शास्‍त्रों में भी उनकी पूजा महत्‍व बताया गया है। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा कठिन क्षणों में भक्‍तों को संबल प्रदान करती है।

हमने यह वीडियो चैत्र नवरात्रि में बनाया था, जो शारदीय नवरात्रि में भी प्रासंगिक है। 

ब्रह्मचारिणी की पूजा 

देवी ब्रह्मचारिणी को चम्पा के पुष्प अत्यंत प्रिय हैं इसलिए उनके पूजन में ये फूल ही अर्पित करें और फल मिष्ठान का भोग लगाएं। कपूर से आरती करें आैर इस मंत्र का जाप करें ‘दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥’ नवरात्रि के दूसरे दिन देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा के दौरान उनकी कथा सुनने से कष्टों से मुक्ति मिलती है आैर धैर्य धारण करने का बल प्राप्त होता है। मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्व सिद्धि प्राप्ति होती है

ब्रह्मचारिणी की कथा 

पौराणिक कथा के अनुसार नारद जी की प्रेणना से शंकर को प्राप्त करने के लिए कठिन तपस्या करके के कारण देवी के इस स्वरूप को तपश्चारिणी यानि ब्रह्मचारिणी नाम से जाना गया। एक हजार वर्ष तक इन्होंने फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक के साथ निर्वाह किया। कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखे और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट सहे। तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। बाद में उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिया। पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही उनका नाम अपर्णा भी पड़ गया। देवता आैर ऋषि, मुनियों ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कर्म बताते हुए सराहना की और कहा कि हे देवी आज तक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की, यह आप से ही संभव थी। अब आपकी मनोकामना परिपूर्ण होगी और भगवान शिव तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। अब आप घर लौट जाइए, जल्द ही आपके पिता आपको लेने आयेंगे। इस कथा का सार यह है कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए। 

ब्रह्मचारिणी की पूजा का महत्व 

शास्त्रों के अनुसार ब्रह्मचारिणी की पूजा से उत्तम बुद्घि, विवेक आैर शीलता की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही अध्ययन, कार्यक्षेत्र आैर व्यापार में सफलता मिलती है। मां ब्रह्मचारिणी की साधना करने वालों को विभिन्न रोगों से भी मुक्ति मिलती है जिनमें त्वचा, मस्तिष्क, आंत, श्वांस नली, गला, वाणी आैर नासिका से संबंधित रोग सम्मिलित हैं। 


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