जलांजलि के साथ तर्पण
धार्मिक मान्यता और हिन्दू कर्मकांड के अनुरूप गया के पांच कोस में चल रहा पितरों के मेले में गहमागहमी बढ़ गई है। धर्म की जय हो के नारे सड़कों पर सुनाई दे रहे हैं। शुक्रवार को पांचवे दिन पिंडदानियों का कारवां अल सुबह शहर के दक्षिणी क्षेत्र में स्थित ब्रह्मसरोवर के आसपास जुटने लगा था। यह स्थान महत्वपूर्ण है। यहां से ही गया
गया। धार्मिक मान्यता और हिन्दू कर्मकांड के अनुरूप गया के पांच कोस में चल रहा पितरों के मेले में गहमागहमी बढ़ गई है। धर्म की जय हो के नारे सड़कों पर सुनाई दे रहे हैं।
शुक्रवार को पांचवे दिन पिंडदानियों का कारवां अल सुबह शहर के दक्षिणी क्षेत्र में स्थित ब्रह्मसरोवर के आसपास जुटने लगा था। यह स्थान महत्वपूर्ण है। यहां से ही गया पंचकोसी की शुरूआत मानी जाती है। सरोवर के उतर और पूरब दिशा में घाट बनाए गए हैं। इन घाटों पर प्रशासन ने यात्रियों के सहूलियत के लिए पंडाल का निर्माण कराया है। पास में एक बड़ा सा भवन भी बना है। सर्वप्रथम सरोवर के उतर दिशा में घाट पर खड़े होकर पितरों को तृप करने के लिए जलाजंलि करने का विधान शुरू होता है। झुंड में आ रहे पिंडदानी अपने पुरोहित के साथ कर्म को सम्पन्न करते हैं। इसके बाद तट पर ही पिंडदान की सामग्री सजा दी गई है और घंटों यह विधान चलता रहता है। दोपहर बाद तक इस सरोवर के आसपास का क्रम पूरा किया गया।
17 दिनों के इस पख में पितरों के निमित श्राद्ध का एक कर्म प्रतिदिन सभी जीवंत 54 वेदियों पर हो रहा है। मान्यता अनुरूप तिथिबार से तर्पण और पिंडदान होता है। लेकिन गौरतलब है कि एक दिवसीय पिंडदान भीड़ देखी नहीं जाती। लोगों का आना-जाना लगा है। पर 17 दिनों के श्रद्धालु तिथि को लेकर हर उन स्थान पर पिंडदान कर रहे है। जहां उनके पूर्वज के प्रेरणा उन्हें ले जा रही है और श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध में जुटे हैं।