क्या है 7 जन्मों तक रिश्ता, विवाह के सात फेरे और सात वचन
हिंदू मान्यताओं के अनुसार जिस किसी से भी विवाह होता है, वह सात जन्मों तक चलता है। व्यवहारिक रूप से यह बात भले ही अजीब लगे, लेकिन मान्यताएं तो यही कहती हैं।
हिंदू मान्यताओं के अनुसार जिस किसी से भी विवाह होता है, वह सात जन्मों तक चलता है। व्यवहारिक रूप से यह बात भले ही अजीब लगे, लेकिन मान्यताएं तो यही कहती हैं।
ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है क्या आपका पुनर्जन्म होगा? यदि हम मान लें कि पुनर्जन्म होगा ता क्या आप ये संभव नहीं कि मनुष्य के रूप में जन्में। क्योंकि कर्मों के अनुसार आपकी योनि निर्धारित होती है।
इन बातों का विस्तार से उल्लेख हमारे धर्म ग्रंथों में कई बार उल्लेखित है। आधुनिक युग की बात की जाए तो शादियों होती हैं। कई शादियों के बाद वर-वधू सुख पूर्वक दांपत्य जीवन का भोग करते हैं लेकिन कई लोग ऐसे भी होते हैं जिनमें तलाक या दंपत्ति में से किसी एक की मृत्यु हो जाती है।
ऐसे में सात जन्मों के साथ कई तरह के सवाल खड़े करता है। इसलिए माना ये जाता है कि वर्तमान में आप जिनके साथ हैं। उनके साथ प्रेमपूर्वक, पारिवारिक जिम्मेदारियों का निर्वाहन करते हुए। जिंदगी को बेहतर से भी ज्यादा बेहतर बनाने की कोशिश निरंतर करते रहे।
विवाह के सात फेरे और सात वचन
1.कन्या वर से कहती है, 'यदि आप कभी तीर्थयात्रा को जाओ तो मुझे भी अपने साथ लेकर जाना। कोई व्रत-उपवास अथवा अन्य धर्म कार्य आप करें तो आज की भांति ही मुझे अपने वाम भाग में अवश्य स्थान दें। यदि आप इसे स्वीकार करते हैं तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं।
2.कन्या वर से दूसरा वचन मांगती है, 'जिस प्रकार आप अपने माता-पिता का सम्मान करते हैं, उसी प्रकार मेरे माता-पिता का भी सम्मान करें तथा कुटुम्ब की मर्यादा के अनुसार धर्मानुष्ठान करते हुए ईश्वर भक्त बने रहें तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं।'
3. कन्या कहती है, 'आप मुझे ये वचन दें कि आप जीवन की तीनों अवस्थाओं (युवावस्था, प्रौढावस्था, वृद्धावस्था) में मेरा पालन करते रहेंगे, तो ही मैं आपके वामांग में आने को तैयार हूं।'
4. कन्या कहती है, 'अब तक आप घर-परिवार की चिन्ता से पूर्णत: मुक्त थे। अब जबकि आप विवाह बंधन में बंधने जा रहे हैं तो भविष्य में परिवार की समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति का दायित्व आपके कंधों पर है। यदि आप इस भार को वहन करने की प्रतीज्ञा करें तो ही मैं आपके वामांग में आ सकती हूं।'
5. इस वचन में कन्या कहती है कि अपने घर के कार्यों में, विवाहादि, लेन-देन अथवा अन्य किसी हेतु खर्च करते समय यदि आप मेरी भी मन्त्रणा लिया करें तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं।
6. यदि मैं अपनी सखियों अथवा अन्य स्त्रियों के बीच बैठी हूं तब आप वहां सबके सम्मुख किसी भी कारण से मेरा अपमान नहीं करेंगे। यदि आप जुआ अथवा अन्य किसी भी प्रकार के दुर्व्यसन से अपने आप को दूर रखें तो ही मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं।
7. अन्तिम वचन के रूप में कन्या ये वर मांगती है कि आप पराई स्त्रियों को माता के समान समझेंगें और पति-पत्नि के आपसी प्रेम के मध्य अन्य किसी को भागीदार न बनाएंगें। यदि आप यह वचन मुझे दें तो ही मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं।