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Vinayak Chaturthi Katha: गणेश जी पूजा करते समय जरूर पढ़ें यह व्रत कथा, बनी रहेगी गणपति बप्पा की कृपा

Vinayak Chaturthi Katha पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव तथा माता पार्वती नर्मदा नदी के किनारे बैठे थे। माता पार्वती शिवजी के साथ समय बीताना चाहती थीं इसलिए उन्होंने शिवजी से चौपड़ खेलने को कहा। शिवजी भी तैयार हो गए।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Published: Fri, 16 Apr 2021 07:30 AM (IST)Updated: Fri, 16 Apr 2021 07:52 AM (IST)
Vinayak Chaturthi Katha: गणेश जी पूजा करते समय जरूर पढ़ें यह व्रत कथा, बनी रहेगी गणपति बप्पा की कृपा
Vinayak Chaturthi Katha: गणेश जी पूजा करते समय जरूर पढ़ें यह व्रत कथा, बनी रहेगी गणपति बप्पा की कृपा

Vinayak Chaturthi Katha: पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान शिव तथा माता पार्वती नर्मदा नदी के किनारे बैठे थे। माता पार्वती शिवजी के साथ समय बीताना चाहती थीं इसलिए उन्होंने शिवजी से चौपड़ खेलने को कहा। शिवजी भी तैयार हो गए। लेकिन वहां कोई ऐसा नहीं था कि जो उनकी हार-जीत का फैसला करे।

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ऐसे में शिवजी ने कुछ तिनके लिए और उससे एक पुतला तैयार किया। फिर उस पुतले में प्राण-प्रतिष्ठा कर दी। फिर उन्होंने पुतले से कहा कि बेटा, यहां हम चौपड़ खेल रहे हैं लेकिन हमारी हार-जीत का फैसला करने वाला कोई नहीं है। ऐसे में अब तुम यह देखोगे कि चौपड़ में कौन हारा और कौन जीता। फिर शिवजी और पार्वती जी ने खेलना शुरू किया। 3 बार खेल खेलने के बाद जीत पार्वती जी की हुई। संयोग से तीनों बार माता पार्वती ही जीत गईं। खेल समाप्त होने के बाद बालक से हार-जीत का फैसला करने के लिए कहा गया, तो उस बालक ने महादेव को विजयी बता दिया।

जब माता पार्वती ने यह सुना तो वे बेहद क्रोधित हुईं। उन्होंने उस बालक को श्राप दिया कि वो लंगड़ा हो जाएगा और कीचड़ में पड़ा रहेगा। बालक ने माता पार्वती से माफी मांगी। उसने कहा कि अज्ञानतावश ऐसा हुआ। मैंने किसी द्वेष भाव में ऐसा नहीं किया। बालक द्वारा क्षमा मांगने पर माता ने कहा- 'यहां गणेश पूजन के लिए नागकन्याएं आती हैं। जैसा वो कहें कि वैसे ही गणेश जी का व्रत करें। ऐसा करने से तुम मुझे प्राप्त करोगे।' बालक को यह कहकर शिव-पार्वती कैलाश चले गए।

फिर एक वर्ष के बाद उस स्थान पर नागकन्याएं आईं। उन्होंने गणेश जी को पूरी व्रत विधि बताई। उस बालक ने 21 दिन लगातार गणेशजी का व्रत किया। उसकी श्रद्धा देख गणेश जी बेहद प्रसन्न हो गए। उन्होंने बालक को मनवांछित फल प्रदान किया।

अब बालक ने कहा- 'हे विनायक! मुझमें इतनी शक्ति दें कि वो अपने पैरों पर चल पाएं और कैलाश पर्वत पर जा पाएं। गणेश जी ने बालक को वरदान दिया और अंतर्ध्यान हो गए। फिर वो बालक कैलाश पर्वत पहुंचा और अपनी कथा उसने भगवान शिव को सुनाई।

माता पार्वती चौपड़ वाले दिन से ही शिवजी से विमुख हो गई थीं। ऐसे में देवी को मनाने के लिए शिवजी ने बालक द्वारा बताीए गए 21 दिन का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से माता पार्वती के मन से भगवान शिव के लिए जो नाराजगी थी, वह समाप्त हो गई। उसके बाद यह व्रत विधि शंकर जी ने पार्वती जी को बतलाई। यह सुन माता पार्वती के मन में भी अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा जागृत हुई। फिर उन्होंने भी यह व्रत किया। व्रत के 21वें दिन कार्तिकेय स्वयं माता पार्वतीजी से आ मिले। उस दिन से श्री गणेश चतुर्थी का यह व्रत समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला व्रत माना जाता है।

डिसक्लेमर

'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'  


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