Move to Jagran APP

मातृभाषा का महत्व

हिंदी हमारी मातृभाषा है। इन दिनों हिंदी को प्रोत्साहन देने के लिए विभिन्न प्रयोजन किए जा रहे हैं। प्रकल्प चलाए जा रहे है। अगले सप्ताह हिंदी दिवस का भी आयोजन किया जाएगा किंतु प्रश्न उठता है कि क्या ये सभी उपाय पर्याप्त हैं।

By Jeetesh KumarEdited By: Published: Sat, 11 Sep 2021 10:15 AM (IST)Updated: Sat, 11 Sep 2021 10:15 AM (IST)
मातृभाषा का महत्व
हिंदी दिवस 2021 - मातृभाषा का महत्व

हिंदी हमारी मातृभाषा है। इन दिनों हिंदी को प्रोत्साहन देने के लिए विभिन्न प्रयोजन किए जा रहे हैं। प्रकल्प चलाए जा रहे है। अगले सप्ताह हिंदी दिवस का भी आयोजन किया जाएगा, किंतु प्रश्न उठता है कि क्या ये सभी उपाय पर्याप्त हैं। हमें स्वयं से यह प्रश्न करना होगा कि विश्व की इतनी पुरानी, समृद्ध साहित्य वाली और इस धरा पर इतने लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा को क्या ऐसे उपायों की आवश्यकता है? वास्तव में भाषा किसी संस्कृति का केंद्रीय बिंदू होती है। इस दृष्टिकोण से हिंदी और भारतीय संस्कृति का एक अटूट संबंध है। यदि हम इस संबंध को और सशक्त करना चाहते हैं तो हमें मातृभाषा की महत्ता समझनी ही होगी। उसके महत्व को समझकर ही हम अपनी सभ्यता और संस्कृति के साथ न्याय करने में भी सक्षम हो सकेंगे।

loksabha election banner

वास्तव में मातृभाषा मात्र अभिव्यक्ति या संचार का ही माध्यम नहीं, अपितु हमारी संस्कृति और संस्कारों की संवाहिका भी है। मातृभाषा में ही व्यक्ति ज्ञान को उसके आदर्श रूप में आत्मसात कर पाता है। भाषा से ही सभ्यता एवं संस्कृति पुष्पित-पल्लवित और सुवासित होती हैं। यह विडंबना ही है कि स्वतंत्रता के सात दशक बाद भी हम अपनी भाषा को उसके यथोचित स्तर तक नहीं पहुंचा पाए हैं। यदि हमें विश्व गुरु के पद पर पुन: प्रतिष्ठित होना है तो यह अपनी मातृभाषा को समुचित सम्मान दिए बिना संभव नहीं। ऐसे में आज आवश्यकता है कि हम अपनी मातृभाषा को व्यापक रूप से व्यवहार में लाएं। हम मातृभाषा की शक्ति को पहचानें। भारत को अगर एक सूत्र में बांधना है तो हमें अपनी मातृभाषा को उचित सम्मान देना होगा। अपनी मातृभाषा पर हमें गर्व की अनुभूति करनी होगी। मातृभाषा से ही हमारे राष्ट्र और समाज के उत्थान का मार्ग प्रशस्त होगा। नि:संदेह हिंदी हमारी मातृभाषा है, पंरतु उसके संवर्धन, संरक्षण और प्रोत्साहन में अन्य भारतीय भाषाओं के साथ संघर्ष उचित नहीं। वास्तव में तो वे हिंदी की सहोदर ही हैं।

डा. मनोज कुमार मिश्र

डिसक्लेमर

'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.