बैसाखी 2018: सिक्खों के 10वें गुरू ने इसी दिन की थी खालासा पंथ की स्थापना
सिक्ख धर्म मानने वालों के लिए बैसाखी एक खास त्योहार होता है। जो उनके सामाजिक जीवन और आस्था से जुड़ा है क्योंकि इसी दिन सिक्ख धर्म की शुरूआत हुई थी।
जनजीवन और आस्था दोनों से जुड़ा पर्व
बैसाखी का पंजाब में दोहरा महत्व है, एक ओर ये फसलों से जुड़ा उत्सव है जिस कारण इसका सामाजिक महत्व है और दूसरी तरफ ये सिक्ख धर्म का आधार भी है। बैसाखी नाम वैशाख से बना है। पंजाब और हरियाणा के किसान सर्दियों में रबी की फसल के पकने की खुशी और उसको काट लेने के बाद नए साल का जश्न मनाते हैं। इसीलिए बैसाखी पंजाब और आसपास के प्रदेशों में मनाया जाने वाला सबसे बड़ा उत्सव माना जाता है। इसी दिन, 13 अप्रैल 1699 को दसवें सिक्ख गुरु गोविंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। सिख मतावलंबी इस त्योहार को अपने पंथ के जन्मोत्सव के रूप में मनाते हैं।
कुछ ऐसे होता है बैसाखी का जश्न
पंजाब और उसके आसपास के क्षेत्रों में परंपरागत नृत्य भांगड़ा और गिद्दा के साथ इस उत्सव का स्वागत किया जाता है। बैसाखी की सुबह श्रद्धालु गुरुद्वारों में अरदास के लिए इकट्ठे होते हैं। इस पर्व का मुख्य समारोह आनंदपुर साहिब, जहां खालसा पंथ की नींव रखी गई थी, आयोजित किया जाता है। इसके लिए तड़के 4 बजे गुरु ग्रंथ साहिब को सम्मान के साथ कक्ष से बाहर लाया जाता है। इसके बाद उसे दूध और जल के छींटों से प्रतीकात्मक रूप से स्नान करा कर तख्त पर स्थापित किया जाता है। फिर पंज प्यारे गुरबानी का पाठ करते हैं। इसके बाद दिन में सबको कड़ा प्रसाद दिया जाता है और लंगर का आयोजन किया जाता है। दिन भर शबद, कीर्तन के कार्यक्रम चलते हैं और ग्रंथ साहब का पाठ किया जाता है। इसके बाद शाम को आग के आसपास इकट्ठे होकर लोग नई फसल की खुशी मनाते हैं।