ऊर्जा: वाणी का संयम- वाणी पर संयम करने वाले मनुष्य समाज के लिए होते हैं प्रेरणास्नोत
Urja वाणी पर संयम करने वाले मनुष्य समाज के लिए प्रेरणास्नोत होते हैं। वे किसी को कष्ट नहीं पहुंचाते हैं। अनगिनत मानवीय गुणों से संपन्न भी होते हैं। हम भी अपनी जीवन यात्रा में संयम से रहने का संकल्प लें।
संयम रखना एक अद्भुत कला है। यह मानव जीवन को सुखी बनाने का रहस्य है। यही हमारे जीवन का मूल आधार भी है। जिसने भी अपनी सभी कर्मेंद्रियों एवं ज्ञानेंद्रियों पर नियंत्रण कर लिया वही मनुष्य बुद्धिमान, विद्वान और महापुरुष बन सकता है। वाणी के संयम का एक उदाहरण यहां देना समीचीन होगा। द्वापर युग समाप्ति की ओर था। महाभारत को बोलकर लिखवाने के लिए महर्षि वेदव्यास जी के मन में किसी योग्य व्यक्ति की कामना जागृत हुई। उनकी इस कामना को पूर्ण करने के लिए गणेश जी ने महाभारत लिखने का संकल्प लिया। महर्षि वेदव्यास जी बोलते गए तथा गणेश जी लिखते गए। बहुत दिनों तक यह कार्य चलता रहा। महाभारत का लेखन कार्य पूर्ण हुआ तो वेदव्यास जी ने गणेश जी से पूछा, ‘महाभाग! मैंने चौबीस लाख शब्द बोलकर आपको लिखवाए हैं। आश्चर्य है कि इस बीच आप एक शब्द भी नहीं बोले। सर्वथा मौन ही रहे। बस लिखते गए।’ तब गणेश जी ने सहज भाव से उत्तर दिया, ‘बादरायण, बड़े कार्य संपन्न करने के लिए शक्ति चाहिए और शक्ति का आधार संयम है। संयम ही समस्त सिद्धियों का प्रदाता है। यदि मैं वाणी का संयम न रख सका होता तो आपका ग्रंथ कैसे पूरा हो पाता?’ इससे स्पष्ट होता है कि संयम से ही सभी कार्य संपन्न होते हैं।
प्रत्येक मनुष्य को अपने जीवन में कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है, लेकिन जो उन्हें सहज रूप से स्वीकार कर संयम से रहते हुए उनका सामना करते हैं, वे उसे जीतकर आनंद का अनुभव करते हैं। जो मनुष्य अपनी वाणी पर नियंत्रण कर पाने में सक्षम होते हैं, वे तन-मन से स्वस्थ और प्रसन्न तो रहते ही हैं। साथ ही अपनी मंजिल को भी वे सहज रूप से पा लेते हैं। वाणी पर संयम करने वाले मनुष्य समाज के लिए प्रेरणास्नोत होते हैं। वे किसी को कष्ट नहीं पहुंचाते हैं। अनगिनत मानवीय गुणों से संपन्न भी होते हैं। हम भी अपनी जीवन यात्रा में संयम से रहने का संकल्प लें।
- डाॅ. राकेश चक्र