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Tulsi Vivah Katha: आज तुलसी का शालिग्राम से क्यों होता है विवाह? पढ़ें यह पौराणिक कथा

Tulsi Shaligram Vivah Katha हिन्दू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को तुलसी विवाह होता है। इस दिन शालीग्राम और तुलसी का विवाह होता है। हर वर्ष कार्तिक शुक्ल एकादशी या देव उठनी एकादशी को तुलसी विवाह क्यों होता है?

By Kartikey TiwariEdited By: Published: Mon, 23 Nov 2020 01:30 PM (IST)Updated: Wed, 25 Nov 2020 06:44 PM (IST)
Tulsi Vivah Katha: आज तुलसी का शालिग्राम से क्यों होता है विवाह? पढ़ें यह पौराणिक कथा
क्यों होता है शालिग्राम से तुलसी विवाह? पढ़ें यह पौराणिक कथा

Tulsi Shaligram Vivah Katha: हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को तुलसी विवाह होता है। इस दिन शालीग्राम और तुलसी का विवाह होता है। शालीग्राम भगवान विष्णु के ही प्रतिरूप हैं। हर वर्ष कार्तिक शुक्ल एकादशी या देव उठनी एकादशी को तुलसी विवाह क्यों होता है? इसके बारे में जानने के लिए आपको इससे जुड़ी पौराणिक कथा पढ़नी चाहिए। इसमें वृंदा के भगवान विष्णु को श्राप देने का वर्णन है।

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तुलसी विवाह की क​था

नारद पुराण के अनुसार, एक समय दैत्यराज जलंधर के अत्याचारों से ऋषि-मुनि, देवता और मनुष्य सभी बहुत परेशान थे। वह बड़ा ही पराक्रमी और वीर था। इसके पीछे उसकी पतिव्रता धर्म का पालन करने वाली पत्नी वृंदा के पुण्यों का फल था, जिससे वह पराजित नहीं होता था। उससे परेशान देवता भगवान विष्णु के पास गए और उसे हराने का उपाय पूछा। तब भगवान श्रीहरि ने वृंदा का पतिव्रता धर्म तोड़ने का उपाय सोचा।

भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धारण कर वृंदा को स्पर्श कर दिया। जिसके कारण वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग हो गया और जलंधर युद्ध में मारा गया। भगवान विष्णु से छले जाने तथा पति के वियोग से दुखी वृंदा ने श्रीहरि को श्राप दिया कि अपकी पत्नी का भी छल से हरण होगा तथा आपको पत्नी वियोग सहना होगा। इसके लिए आपको पृथ्वी पर जन्म लेना होगा। यह श्राप देने के बाद वृंदा सती हो गई। उस स्थान पर तुलसी का पौधा उग गया। रामावतार में श्राप के कारण सीता हरण होता है और श्रीराम पत्नी वियोग सहन करते हैं। एक अन्य कथा में कहा गया है कि वृंदा ने भगवान विष्णु को निष्ठुर व्यवहार करने के कारण पत्थर होने का श्राप दिया ​था। उसके कारण ही शालिग्राम स्वरुप में भगवान विष्णु की पूजा होती है।

वृंदा का पतिव्रता धर्म तोड़ने से भगवान विष्णु को बहुत ग्लानि हुई। तब उन्होंने वृंदा को आशीष दिया कि वह तुलसी स्वरुप में सदैव उनके साथ रहेगी। उन्होंने कहा कि कार्तिक शुक्ल एकादशी को जो भी शालिग्राम स्वरुप में उनका विवाह तुलसी से कराएगा, उसकी मनोकामना पूर्ण होगी। तब से तुलसी विवाह होने लगा।


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