यहा परंपरा अनूठी और बेमिशाल है
राजाशाही जमाने में पन्ना की रथयात्रा बड़े ही शान-शौकत के साथ निकलती थी। रूस्तम गज हाथी की कहानी भी यहां काफी प्रचलित है। महाराज का यह प्रिय हाथी अपनी सूंड़ से चौर हिलाता था।
मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में पन्ना में पुरी की तर्ज पर आयोजित होने वाले ऐतिहासिक रथयात्रा महोत्सव की परंपरा अनूठी और बेमिशाल है। देश की तीन सबसे पुरानी व बड़ी रथयात्राओं में पन्ना की रथयात्रा भी शामिल है जो पूरे वैभव व धूमधाम के साथ हर साल निकलती है। इस साल 20 जून से स्नान यात्रा से शुरू होगी।
पन्ना की इस प्राचीन ऐतिहासिक रथयात्रा की शुरूआत तत्कालीन पन्ना नरेश महाराजा किशोर सिंह जू देव द्वारा 180 वर्ष पूर्व की गई थी जो परंपरागत रूप से आज भी जारी है। जिले के इस सबसे बड़े धार्मिक समारोह में शामिल होने तथा जगन्नाथ स्वामी जी की एक झलक पाने के लिए जहां दूर-दूर से श्रद्घालु यहां आते हैं वहीं प्रशासन द्वारा भी इस आयोजन को लेकर काफी प्रबंध किए जाते हैं।
राजसी ठाट-बाट के साथ निकलती है रथयात्रा
इस वर्ष पन्ना जिले की प्राचीन और ऐतिहासिक रथयात्रा महोत्सव को और अधिक भव्यता व गरिमा प्रदान करने के लिए विशेष तैयारियां की जा रही हैं। परंपरा के अनुसार पन्ना की रथयात्रा पूरे वैभव और राजशी ठाट-बाट के साथ निकले, इसके लिए कलेक्टर सहित नगर के प्रबुद्घजन व जनप्रतिनिधि खासा रूचि ले रहे हैं। समारोह से पूर्व शहर के जिन मार्गों से होकर रथयात्रा को गुजरना है उनका सुधार कराने के साथ-साथ पन्ना से जनकपुर तक पूरे मार्ग को बेहतर बनाया जा रहा है।
6 जुलाई को बड़ा दिवाला से प्रस्थान करेंगे रथ
रथयात्रा महोत्सव 20 जून को स्नान यात्रा से प्रारंभ होगा। भगवान को पथ्य प्रसाद 4 जुलाई को देकर कार्यक्रम प्रारंभ होंगे। इसके बाद 5 जुलाई को रात 8 बजे धूपकपूर की झांकी का आयोजन होगा। रथयात्रा 6 जुलाई को शाम 6.30 बजे जगदीश स्वामी मंदिर से प्रारंभ होगी। भगवान बलभद्र, भगवान जगन्नाथ तथा देवी सुभद्रा का परम्परानुसार पूजन अर्चन करने के बाद सजे-धजे रथों में यात्रा प्रारंभ होगी। रथयात्रा के प्रथम दिन 6 जुलाई को रथ बड़ा दिवाला से प्रस्थान करके लखूरन में विश्राम करेंगे। इसके बाद रथयात्रा 7 को शाम 5 बजे लखूरन से प्रस्थान कर चौपरा में विश्राम करेगी। रथयात्रा 8 को शाम 6 बजे जनकपुर मंदिर पहुंचेगी। यहां भगवान का पूजन, आरती से स्वागत किया जाएगा।
लाखों की संख्या में शामिल होते हैं श्रद्घालु
रथयात्रा समारोह में बुंदेलखंड से लाखों की संख्या में श्रद्घालु आते हैं, इसलिए प्रशासन द्वारा अभी से चाक-चौबंद व्यवस्थाएं की जा रही हैं ताकि श्रद्घालुओं को किसी भी तरह की असुविधा न हो।
पुरी से आई थी जगन्नााथ स्वामी जी की प्रतिमा
रथयात्रा महोत्सव के संबंध में पूर्व नपा अध्यक्ष बृजेन्द्र सिंह बुंदेला का कहना हैं कि 180 वर्ष पूर्व तत्कालीन पन्ना नरेश महाराजा किशोर सिंह ने जब यहां रथयात्रा महोत्सव की शुरूआत की थी, तब वे पुरी से भगवान जगन्नााथ स्वामी जी की प्रतिमा लेकर आए थे और पन्ना में भव्य मन्दिर का निर्माण कराया था। पुरी में चूंकि समुद्र है इसलिए पन्ना के जगन्नााथ स्वामी मन्दिर के सामने इंद्ररमन सरोवर का निर्माण कराया गया था। तभी से पुरी की ही तर्ज पर पन्ना में रथयात्रा निकली जाती हैं।
किवदंती है कि जिस वर्ष यहां मन्दिर का निर्माण हुआ तो यहां अटका चढ़ाया गया फलस्वरूप उस वर्ष पुरी में अटका नहीं पका था। महाराज किशोर सिंह को स्वप्न आया कि पन्ना में अटका न चढ़ाया जाए अन्यथा पुरी का महत्व कम हो जाएगा तब से यहां पर भगवान को अंकुरित मूंग का प्रसाद चढ़ाया जाने लगा जो परंपरा आज भी कायम है।
महाराज का हाथी सूंड़ से चौर हिलाता था
रथयात्रा को लेकर नगर के बुजुर्गों का कहना है कि राजाशाही जमाने में पन्ना की रथयात्रा बड़े ही शान-शौकत के साथ निकलती थी। रूस्तम गज हाथी की कहानी भी यहां काफी प्रचलित है। महाराज का यह प्रिय हाथी अपनी सूंड़ से चौर हिलाता था। आजादी के कई सालों तक रथयात्रा का वैभव व प्राचीन परंपरा कायम रही।
वर्ष 2003 में प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह रथयात्रा में शामिल हुए थे, लेकिन तब से फिर कोई भी मुख्यमंत्री रथयात्रा में शामिल नहीं हुआ। यदि शासन व प्रशासन तथा जनप्रतिनिधि व प्रबुद्घ नागरिक पन्ना की इस प्राचीन धार्मिक आयोजन को भव्यता प्रदान करने में रूचि ले और रचनात्मक पहल करें तो पन्ना की रथयात्रा भी पुरी की तरह ख्याति पा सकती है जिससे पवित्र नगर पन्ना में पर्यटन उद्योग के विकास की संभावनाएं भी और अधिक बलवती हो सकेंगी।