षट्पदी का प्राच्य केन्द्र गया
भारतीय धर्म साहित्य के अथाह सागर में से एक से बढ़ के एक उदाहरण महामोक्ष तीर्थ गया के नाम सन्निहित है और ऐसा ही एक तथ्य है गया में षट्पदी का होना। वायुपुराण इस तथ्य का स्पष्ट गवाह है कि गयाजी में छह मुक्तिदायक तीर्थ अवस्थित है। गरुड़ पुराण में स्पष्ट उल्लेख है कि 'विष्णुरेकादशी गीता तुलसी विप्रधेनव:।। असारे दुर्ग संसारे षटपदी मुक्तिदायिनी।।
भारतीय धर्म साहित्य के अथाह सागर में से एक से बढ़ के एक उदाहरण महामोक्ष तीर्थ गया के नाम सन्निहित है और ऐसा ही एक तथ्य है गया में षट्पदी का होना। वायुपुराण इस तथ्य का स्पष्ट गवाह है कि गयाजी में छह मुक्तिदायक तीर्थ अवस्थित है। गरुड़ पुराण में स्पष्ट उल्लेख है कि 'विष्णुरेकादशी गीता तुलसी विप्रधेनव:।। असारे दुर्ग संसारे षटपदी मुक्तिदायिनी।। (2/24-25) अर्थात् विष्णु एकादशी व्रत, गीता, तुलसी, ब्राहमण और गौ ये छह इस असार संसार में लोगों को मुक्ति प्रदान करने के साधन हैं और इन्हें षट्पदी कहा जाता है। पुराणों के इस पंक्ति से षट्पदी का भाव और भी स्पष्ट हो जाता है कि पंचकोश गया क्षेत्र कोशमेकं गयाशिर:।। अर्थात इन छह कोशो की गणना में षट्पदी की समृद्धता स्पष्ट रूप से रेखांकित है। यह आप हम सभी जानते हैं कि गया श्री विष्णु की प्रधान लीला स्थली है।
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