यही संपत्ति से सुगति का मार्ग है
इसी तरह यदि किसी ने अपने धन का भली प्रकार से उपभोग कर लिया, तो समझें कि उसने अपने धन का कुछ न कुछ सार्थक उपयोग कर लिया।
मनुष्य द्वारा उसके श्रम अथवा उसके बुद्धि-चातुर्य से अर्जित धन की उसके ही जीवनकाल में तीन गतियां होती
हैं। धन की एक गति होती है दान देने की, दूसरी गति होती है इसके उपभोग कर लेने की और तीसरी गति होती है इसके विनष्ट हो जाने की। अभिप्राय यह है कि किसी भी व्यक्ति ने यदि अपने द्वारा अर्जित किए गए धन का यथोचित दान कर दिया, तो उस व्यक्ति ने अपने द्वारा अर्जित धन का सही इस्तेमाल कर लिया।
इसी तरह यदि किसी ने अपने धन का भली प्रकार से उपभोग कर लिया, तो समझें कि उसने अपने धन का कुछ न कुछ सार्थक उपयोग कर लिया। किंतु यदि कोई इन दोनों प्रकार से धन का उपयोग करने में चूक गया, तो फिर उसके धन की तीसरी गति होना अवश्यंभावी है और वह गति है धन का पूरी तरह से विनष्ट होना। मनुष्य एक
सामाजिक प्राणी है। समाजशास्त्रियों द्वारा यह जो सिद्धांत दिया गया है, इसके पीछे संकेत है कि कोई भी व्यक्ति यहां अपने-आप में पूर्ण नहीं है। इसलिए इस संसार के किसी भी पदार्थ पर उसका अकेले अधिकार भी नहीं है। चाहे यह उसके द्वारा स्वयं अर्जित किया ही क्यों न हो। इसीलिए महर्षि व्यास ने श्रीमद्भगवद में स्पष्ट रूप से कहा है कि जो अपनी संपत्ति से इस लोक में अथवा परलोक में कल्याण की कामना करता है, उसे चाहिए कि वह अपनी संपत्ति को पांच भागों में बांटकर ही उसका उपभोग करे। वे उन पांच भागों का कथन करते हुए बताते हैं कि अपनी संपत्ति का एक भाग धर्म कार्य के लिए होना चाहिए, जिसमें देवपूजन, अतिथि सेवा, निराश्रितों को किया जानेवाला सहयोग सम्मिलित है।
महर्षि व्यास के अनुसार संपत्ति का दूसरा भाग अर्थोपार्जन के लिए सुरक्षित होना चाहिए। इस भाग को व्यक्ति को उस प्रकार के व्यापार आदि में व्यय करना चाहिए, जिससे उसकी जीविका चले और परिवार का निर्वाह ठीक से हो। महर्षि के अनुसार अपने धन का तीसरा हिस्सा उसके लिए हो, जिसके जरिये हम अपने मन की इच्छाओं को पूरा कर सकें। धन के चतुर्थ भाग का उपयोग व्यक्ति अपने जीवन में यश की प्राप्ति के लिए करे। मनुष्य की एक सहज-स्वाभाविक वृत्ति होती है, जिसमें वह चाहता है कि उसे अपने जीवन में यश की प्राप्ति हो। इसलिए अपने धन के एक भाग का व्यय यश पाने के लिए करना चाहिए। महर्षि व्यास के अनुसार धनोपार्जन के संदर्भ में पांचवीं महत्वपूर्ण बात यह है कि व्यक्ति कभी अपने स्वजनों को भूले नहीं और पूरी तरह से उनका सहयोग करता रहे। यही संपत्ति से सुगति का मार्ग है।