जुगात देती है नंदीकुंड की जात को पूर्णता
नंदा के मायके में अलकनंदा नदी के पश्चिमी छोर की सहायक जलधारा बालखिला से कल्प गंगा के बीच के हिस्से को मल्ला नागपुर क्षेत्र कहा गया है। भादौ में यहीं आयोजित होती है नंदीकुंड की नंदाजात। चमोली जिले के जोशीमठ व दशोली ब्लाक के उर्गम थात, पंचगाई थात व द्योखार
देहरादून । नंदा के मायके में अलकनंदा नदी के पश्चिमी छोर की सहायक जलधारा बालखिला से कल्प गंगा के बीच के हिस्से को मल्ला नागपुर क्षेत्र कहा गया है। भादौ में यहीं आयोजित होती है नंदीकुंड की नंदाजात। चमोली जिले के जोशीमठ व दशोली ब्लाक के उर्गम थात, पंचगाई थात व द्योखार थात के लगभग 40 गांवों के लोग हर साल नंदीकुंड नंदाजात का आयोजन करते हैं। यह जात नंदा को ससुराल कैलास से मायके लाने की यात्रा है, जबकि अन्य लोकजात नंदा से उसके ससुराल क्षेत्र में मिलने जाने की यात्राएं हैं।
रहस्य, रोमांच एवं कौतूहल से भरी यह यात्रा समुद्रतल से 17500 फीट की ऊंचाई पर कठिन विनायक र्दे को पार कर नंदीकुंड में पराकाष्ठा को पहुंचती है। यहां पूजा-अर्चना के बाद भगोती नंदा को मायके लाने की मनौती की जाती है और फिर सभी यात्री हंसी-खुशी नंदा को अपने अपने गांव लाते हैं। नौ दिन की नंदीकुंड नंदाजात इस बार 18 सितंबर को नंदा को लिवाने नंदीकुंड के लिए प्रस्थान करेगी और 26 सितंबर तक अपने-अपने गांवों को लौट आएगी। लोक के सरोकारों से वास्ता रखने वाले क्षेत्र के युवा संजय चौहान बताते हैं कि चार दिन तक उच्च हिमालयी क्षेत्र में निर्जन पड़ावों से गुजरने वाली इस जात के वापस लौटने पर विभिन्न गांवों में दो दिन तक जुगात (जागरों के माध्यम से नंदा को कैलास भेजने की मनौती) की जाती है। ..और इसी के साथ विराम लेता है नंदा उत्सव।
नंदीकुंड नंदाजात समिति के अध्यक्ष बहादुर सिंह रावत बताते हैं कि नंदीकुंड नंदाजात का उद्देश्य जहां परंपराओं एवं संस्कृति का संरक्षण करना है, वहीं ईको टूरिज्म को बढ़ावा देना भी है। इस लोकयात्रा के माध्यम से जहां श्रद्धालु व पर्यटक हिमालय के दुर्लभ एवं अभिभूत कर देने वाले सौंदर्य से रूबरू होते हैं, वहीं उन्हें प्रकृति का महत्व भी समझ में आता है। इसलिए सरकार को भी चाहिए कि वह नंदीकुंड नंदाजात को अपनी प्राथमिकताओं में शामिल कर इसे राज्य के पर्यटन मानचित्र में स्थान दे।