चैत्र शुक्ल नवमी को मनता है श्रीराम जन्मोत्सव
विक्रमी सवंत्सर का प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है और उसके आठ दिन बाद चैत्र शुक्ल नवमी को आती है रामनवमी यानी श्रीराम जन्मोत्सव। रामनवमी भगवान राम की स्मृति को समर्पित है। राम सदाचार के प्रतीक हैं, इसलिए उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया। उन्हें श्रीविष्णु का अवतार भी माना जाता है, जो पृथ्वी पर अजेय रावण से युद्ध लड़ने
देहरादून। विक्रमी सवंत्सर का प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है और उसके आठ दिन बाद चैत्र शुक्ल नवमी को आती है रामनवमी यानी श्रीराम जन्मोत्सव। रामनवमी भगवान राम की स्मृति को समर्पित है।
राम सदाचार के प्रतीक हैं, इसलिए उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया। उन्हें श्रीविष्णु का अवतार भी माना जाता है, जो पृथ्वी पर अजेय रावण से युद्ध लड़ने के लिए आए। इसलिए 'राम राज्य' शांति एवं समृद्धि की अवधि का पर्यायवाची बन गया।
श्रीविष्णु ने राम रूप में असुरों का संहार करने के लिए पृथ्वी पर अवतार लिया और जीवन में मर्यादा का पालन करते हुए मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए। अयोध्या के राजकुमार होते हुए भी श्रीराम पिता के वचनों का मान रखने के लिए संपूर्ण वैभव को त्याग 14 वर्ष के लिए वन चले गए। श्रीराम का जन्म चैत्र शुक्ल नवमी को पुनर्वसु नक्षत्र एवं कर्क लग्न में महाराजा दशरथ के घर कौशल्या की कोख से हुआ। 'अगस्त्य संहिता' के अनुसार इस अवधि में सूर्य अन्य पांच ग्रहों की शुभ दृष्टि के साथ मेष राशि पर विराजमान थे। जैसे ही सौंदर्य निकेतन, शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण किए हुए चतुभरुजधारी श्रीराम प्रकट हुए, माता कौशल्या विस्मित रह गईं। गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं, 'उनके सौंदर्य व तेज को देख माता के नेत्र तृप्त नहीं हो रहे थे और देवलोक भी अवध के सामने फीका लग रहा था'।
कहते हैं कि रामनवमी के दिन ही गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना का श्रीगणोश किया था। स्वामी दिव्येश्वरानंद कहते हैं कि श्रीराम ने अपने जीवन का उद्देश्य अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना करना बनाया। इसीलिए नवमी को शक्ति मां सिद्धिदात्री के साथ शक्तिधर श्रीराम की पूजा की जाती है।