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श्रीराम विवाहोत्सव और श्रीपंचमी पर पूर्णा योग

सनातनी परंपरा में मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को श्रीराम विवाह पंचमी के नाम से जाना जाता है। इस दिन श्रद्धालु प्रभु श्रीराम विवाहोत्सव धूमधाम से मनाते हैं। इसे श्रीपंचमी के रूप में भी जाना जाता है। पंचमी इस बार 26 नवंबर को पड़ रही है जो दिन

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 27 Nov 2014 03:08 PM (IST)Updated: Thu, 27 Nov 2014 03:14 PM (IST)
श्रीराम विवाहोत्सव और श्रीपंचमी पर पूर्णा योग

वाराणसी। सनातनी परंपरा में मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को श्रीराम विवाह पंचमी के नाम से जाना जाता है। इस दिन श्रद्धालु प्रभु श्रीराम विवाहोत्सव धूमधाम से मनाते हैं। इसे श्रीपंचमी के रूप में भी जाना जाता है। पंचमी इस बार 26 नवंबर को पड़ रही है जो दिन में एक बजे लग रही और 27 को दिन 10.59 तक रहेगी।

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ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार तिथि विशेष पर बृहस्पतिवार का संयोग अपने आप में अद्भूत है जिसे ज्योतिष में पूर्णा योग कहा जाता है। इस तिथि पर किसी शुभ कार्य को शुरू करने पर संपूर्णता अवश्य प्राप्त होती है।

मर्यादा पुरुषोत्तम का विवाह-गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में लिखा है कि 'हिम ऋतु अगहन मास सुहावा..Ó अर्थात विष्णु अवतारी मर्यादा पुरुषोत्तम राम के विवाह की अगवानी हेमंत ऋतु में, यह अगहन मास कितना सुंदर लग रहा है। अभिप्राय यह कि हंिदूी के बारहों मासो में मार्गशीर्ष सर्वश्रेष्ठ है। भगवान श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं 'मासानाम मार्ग शीर्षोहं..Ó अर्थात सभी मासों में मार्गशीर्ष हूं मैं।

त्रेता में प्रभु राम का विवाह अगहन शुक्ल पंचमी को हुआ था। भगवान राम को मानने वाले इस दिन राम विवाहोत्सव मनाते हैं। इससे चारों पुरुषार्थ यथा धर्म अर्थ काम व मोक्ष प्राप्ति होती है।

भगवती का व्रत और आराधना-श्रीपंचमी व्रत मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी सेआरंभ कर एक वर्ष तक हर मास की शुक्ल पंचमी को किया जाता है। इससे व्रती पर माता लक्ष्मी की विशेष अनुकंपा होती है। इस दिन व्रती को प्रात: स्नानादि से निवृत्त हो लक्ष्मी कामना से संकल्प फिर माता के कमलपुष्प धारिणी, कमलासन पर विराजमान व दो गजेंद्रों द्वारा छोड़े जल से स्नान करते रूप का ध्यान करना चाहिए।

लक्ष्मी आराधना में श्रीसूक्त, लक्ष्मी सूक्त, लक्ष्मी चालीसा, लक्ष्मी मंत्र आदि का पाठ और ऋतु फल व दुग्ध निर्मित्त मिठाई का भोग लगाना चाहिए। मार्गशीर्ष में श्री, पौष में लक्ष्मी, माघ में कमला, फागुन में संतति, चैत में पद्मा, वैशाख में नारायणी, ज्येष्ठ में घृति, आषाढ़ में स्मृति, सावन में पुष्टि, भाद्रपद में तुष्टि, आश्विन में सिद्धि व कार्तिक में क्षमा यानी 12 देवियों का अलग-अलग मास में पूजन का विधान है। मान्यता है इससे पुत्र, सुख, सौभाग्य, ऐश्वर्य व स्थिर लक्ष्मी प्राप्ति होती है।

अस्सी स्थित रामजानकी मठ में तीन दिनी रामविवाह महोत्सव के पहले दिन बुधवार को मटकोर की रस्म निभाई गई। मांगलिक आयोजन के मुताबिक महिलाओं ने साज श्रृंगार किया। मंगल गीत गाए और गंगा तट के लिए प्रस्थान किया। भगवती गंगा और गौरी पूजा अर्चन कर सिया के मटकोर की रस्म पूरी कराई। अनूठे आयोजन को देखने के लिए मठ से गंगा तट तक श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी। बटुकों ने शंख ध्वनि व वेद मंत्रों से पूरा क्षेत्र गुंजायमान किया। मठ प्रभारी संत रामलोचन दास ने संयोजन किया। बताया कि 27 को तीसरे पहर तीन बजे राम बरात शोभायात्र निकलेगी। तीसरे दिन 28 की शाम 6.30 बजे रामकलेवा में भगवान को छप्पन प्रकार के पकवानों का भोग लगेगा।

मन मोह गई कोहबर की झांकी- पीएसी छावनी स्थित जनकपुर मंदिर में गुरुवार को प्रभु श्रीराम समेत चारों भाइयों के कोहबर की झांकी मन मोह गई। विवाह पंचमी पर प्रभु श्रीराम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न के सपत्नीक विग्रहों का रच रच कर श्रृंगार किया गया। उन्हें लड्डू, खाझा व माठ का भोग लगाया गया। पीएसी बैंड ने भगवान के विवाह पर मंगल धुन बिखेरी। महाराज अनंत नारायण सिंह व कुंवर प्रद्युम्न नारायण सिंह ने दर्शन किया। इसके साथ ही पीएसी जवानों की गर्दन तनी और भगवान को गार्ड आफ आनर पेश किया। रामायणियों ने मानस की चौपाइयों से परिसर गुंजा दिया। दर्शन पूजन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी जो शाम पांच से रात 9.30 बजे तक चला। पुजारी पं. लक्ष्मी नारायण पांडेय ने अनुष्ठान किए।


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