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    Shardiya Navratri 2025 Day 6: नवरात्र के छठे दिन करें इस आरती और चालीसा का पाठ, मिलेगा मनचाहा जीवनसाथी

    Updated: Sun, 28 Sep 2025 06:20 AM (IST)

    शारदीय नवरात्र के छठे दिन (Shardiya Navratri 2025 Day 6) मां कात्यायनी की पूजा का विधान है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इनकी आराधना से विवाह संबंधी बाधाएं दूर होती हैं। ऐसे में इस दिन मां कात्यायनी की विधिवत पूजा करें और आरती व चालीसा का पाठ करें। ऐसा करने से मां की कृपा प्राप्त होगी।

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    Shardiya Navratri 2025 Day 6: शारदीय नवरात्र के छठे करें ये काम।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Shardiya Navratri 2025 Day 6: आज शारदीय नवरात्र का छठा दिन है। यह दिन मां कात्यायनी को समर्पित है, जो देवी दुर्गा का छठा स्वरूप हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन देवी की पूजा करने से विवाह से जुड़ी सभी मुश्किलें दूर होती हैं। ऐसे में इस दिन (Shardiya Navratri 2025) सुबह जल्दी उठें और स्नान-ध्यान करें।

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    देवी के सामने घी का दीया जलाएं। इसके बाद उन्हें फल, मिठाई और फूल आदि चढ़ाएं। फिर मां की चालीसा और आरती का पाठ करें, जो इस प्रकार हैं -

    ॥मां कात्यायनी की आरती॥ (Maa Katyayani Puja)

    जय जय अम्बे जय कात्यायनी।

    जय जग माता जग की महारानी॥

    बैजनाथ स्थान तुम्हारा।

    वहावर दाती नाम पुकारा॥

    कई नाम है कई धाम है।

    यह स्थान भी तो सुखधाम है॥

    हर मंदिर में ज्योत तुम्हारी।

    कही योगेश्वरी महिमा न्यारी॥

    हर जगह उत्सव होते रहते।

    हर मंदिर में भगत है कहते॥

    कत्यानी रक्षक काया की।

    ग्रंथि काटे मोह माया की॥

    झूठे मोह से छुड़ाने वाली।

    अपना नाम जपाने वाली॥

    बृहस्पतिवार को पूजा करिए।

    ध्यान कात्यानी का धरिये॥

    हर संकट को दूर करेगी।

    भंडारे भरपूर करेगी॥

    जो भी मां को भक्त पुकारे।

    कात्यायनी सब कष्ट निवारे॥

    ॥दुर्गा चालीसा॥

    ॥ चौपाई ॥

    नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो अम्बे दुःख हरनी॥

    निराकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूँ लोक फैली उजियारी॥

    शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥

    रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे॥

    तुम संसार शक्ति लय कीना। पालन हेतु अन्न धन दीना॥

    अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥

    प्रलयकाल सब नाशन हारी। तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥

    शिव योगी तुम्हरे गुण गावें। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥

    रूप सरस्वती को तुम धारा। दे सुबुद्धि ऋषि-मुनिन उबारा॥

    धरा रूप नरसिंह को अम्बा। प्रगट भईं फाड़कर खम्बा॥

    रक्षा कर प्रह्लाद बचायो। हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥

    लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं। श्री नारायण अंग समाहीं॥

    क्षीरसिन्धु में करत विलासा। दयासिन्धु दीजै मन आसा॥

    हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखानी॥

    मातंगी अरु धूमावति माता। भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥

    श्री भैरव तारा जग तारिणी। छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥

    केहरि वाहन सोह भवानी। लांगुर वीर चलत अगवानी॥

    कर में खप्पर-खड्ग विराजै। जाको देख काल डर भाजे॥

    सोहै अस्त्र और त्रिशूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला॥

    नगर कोटि में तुम्हीं विराजत। तिहुंलोक में डंका बाजत॥

    शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे। रक्तबीज शंखन संहारे॥

    महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेहि अघ भार मही अकुलानी॥

    रूप कराल कालिका धारा। सेन सहित तुम तिहि संहारा॥

    परी गाढ़ सन्तन पर जब-जब। भई सहाय मातु तुम तब तब॥

    अमरपुरी अरु बासव लोका। तब महिमा सब रहें अशोका॥

    ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥

    प्रेम भक्ति से जो यश गावै। दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥

    ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई। जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥

    जोगी सुर मुनि कहत पुकारी। योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥

    शंकर आचारज तप कीनो। काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥

    निशिदिन ध्यान धरो शंकर को। काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥

    शक्ति रूप को मरम न पायो। शक्ति गई तब मन पछितायो॥

    शरणागत हुई कीर्ति बखानी। जय जय जय जगदम्ब भवानी॥

    भई प्रसन्न आदि जगदम्बा। दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥

    मोको मातु कष्ट अति घेरो। तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥

    आशा तृष्णा निपट सतावे। मोह मदादिक सब विनशावै॥

    शत्रु नाश कीजै महारानी। सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥

    करो कृपा हे मातु दयाला। ऋद्धि-सिद्धि दे करहु निहाला॥

    जब लगि जियउं दया फल पाऊं। तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं॥

    दुर्गा चालीसा जो नित गावै। सब सुख भोग परमपद पावै॥

    देवीदास शरण निज जानी। करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥

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