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Sawan 2019: जानें भगवान शिव क्यों कहलाए महादेव, जलाभिषेक का महत्व

Sawan 2019 सावन का महीना देवताओं खासकर शिवजी को विशेष प्रिय है। मान्यता है कि सागर मंथन के बाद हलाहल निकला तो शिव जी ने सृष्टि कल्याण के लिए उसे कंठ में धारण कर लिया।

By kartikey.tiwariEdited By: Published: Tue, 23 Jul 2019 12:22 PM (IST)Updated: Tue, 23 Jul 2019 12:22 PM (IST)
Sawan 2019: जानें भगवान शिव क्यों कहलाए महादेव, जलाभिषेक का महत्व
Sawan 2019: जानें भगवान शिव क्यों कहलाए महादेव, जलाभिषेक का महत्व

Sawan 2019: सावन का महीना देवताओं खासकर शिवजी को विशेष प्रिय है। मान्यता है कि जब सागर मंथन के बाद हलाहल निकला, तो शिव जी ने सृष्टि के कल्याण के लिए उसे अपने कंठ में धारण कर लिया। विष के ताप को कम करने के लिए देवताओं ने शिवजी पर जलाभिषेक किया। यह महीना सावन ही था। तभी से भक्तगण पूरे महीने शिवजी पर जलाभिषेक करते आ रहे हैं। दूसरी कथा यह भी है कि देवशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु सृष्टि के संचालन का भार शिवजी को सौंप कर विश्राम के लिए चले जाते हैं।

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गंगाजल से अभिषेक

जहां-जहां शिव स्वयं प्रकट हुए, उन बारह स्थानों पर स्थित शिवलिंगों को द्वादश ज्योतिर्लिंग कहा जाता है। इनमें से एक देवघर के शिवलिंग बाबा बैद्यनाथ भी हैं, जहां शिवजी का पूरे महीने जलाभिषेक किया जाता है। देवघर जाने वाले कांवड़ियों में देश के साथ-साथ विदेश के भी श्रद्धालु होते हैं। सुल्तानगंज से गंगाजल भरने के बाद श्रद्धालुओं की यात्रा वहीं से शुरू हो जाती है। पैदल या वाहनों से यात्रा पूर्ण कर वे शिवजी का जलाभिषेक करते हैं। मान्यता है कि राजा भगीरथ ने घोर तपस्या कर गंगा को स्वर्ग से धरती पर उतारा, जिसे भोले शंकर ने अपनी जटा पर धारण कर लिया था। इसलिए शिव को गंगा विशेष प्रिय हैं।

'रामचरितमानस' में रामेश्वरम में शिवलिंग की पूजा के बाद श्रीराम कहते हैं कि इस शिवलिंग पर गंगाजल चढ़ाने वाले न केवल मुक्ति पा जाएंगे, बल्कि मुझसे एकाकार भी हो जाएंगे।

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दर्शन की दृष्टि

समभाव की सबसे बड़ी शर्त है कि आपस में भय का वातावरण न रहे। मनुष्य एक-दूसरे को मनुष्य समझे। यह तभी संभव है, जब हम भय से दूर होंगे। हम अपने चारों ओर के वातावरण को हिरण की तरह देखते हैं, जैसे कि डरे हुए हों या फिर शेर की तरह देखते हैं जैसे कि दूसरों को डरा रहे हों। दूसरों को देखना दर्शन कहा जाता है। पर भय के कारण उत्पन्न दृष्टि जो दूसरे को स्वीकार नहीं करती, दर्शन नहीं कही जा सकती है। दर्शन तो वह दृष्टि है, जो भय से मुक्त है। जो दूसरे को शुद्ध दृष्टि से देखती हो। 'यह मेरा है या यह मेरा नहीं है' दृष्टि से नहीं। दर्शन समभाव से देखने की दृष्टि है। ब्रह्मा भय दिखाकर प्रकृति को अपने नियंत्रण में करना चाहते हैं। वहीं दूसरी ओर शिव जीवन देते हैं। बदले में कुछ भी अपेक्षा नहीं करते। वे नहीं चाहते हैं कि उनकी आज्ञा मानी जाएं। इसीलिए तो शिव महादेव कहलाते हैं।

(देवदत्त पट्टनायक की किताब 'शिव के सात रहस्य' से)

प्रस्तुति: स्मिता

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