बस्तर दशहरा : मांईजी के छत्र के साथ फूल रथ परिक्रमा शुरू
सोमवार को मंगरमुंही रस्म एक बकरे की बलि के साथ पूरी की गई। रथ के एक्सल को स्थानीय बोली में मगरमुंही कहा जाता है।
जगदलपुर। दशहरा पर्व के तहत सोमवार शाम से फूल रथ परीक्रमा शुरू किया गया। परम्परा अनुसार देवी दंतेश्वरी की छत्र को ससम्मान पूजा-अर्चना उपरांत फूल रथ में आरूढ़ करवाया गया। तत्पश्चात रथ ने मावली मंदिर की पहली परीक्रमा पूर्ण की। फूल रथ परीक्रमा पांच दिनों तक जारी रहेगा।
कार्यक्रम के पूर्व रथ को गेंदे की फूलों से आकर्षक रूप से सजाया गया था। शाम करीब सात बजे दंतेश्वरी मंदिर के प्रधान पुजारी प्रेम पाढ़ी ने राजपरिवार सदस्य कमल चंद भंजदेव एवं दशहरा कमेटी के पदाधिकारियों की मौजूदगी में देवी की पूजा आराधना की। तदुपरांत गाजे-बाजे के साथ माईजी का छत्र सिरासार स्थित मावली देवी मंदिर लाया गया। यहां देवी की अर्चना के बाद छत्र जग्गनाथ मंदिर परिसर स्थित राम मंदिर लाया गया। जहां नजर उतारनी रस्म के तहत पूजा-पाठ किया गया।
इसके बाद भारी जयकारों के साथ देवी की छत्र जगन्नाथ मंदिर के सामने खड़े फूल रथ में आरूढ़ की गई। साथ ही प्रधान पुजारी भी रथ में सवार हुए। इस दौरान पारम्परिक वाद्य यंत्रों की धुन के बीच पुलिस बल की ओर से तीन राउंड हर्ष फायर कर देवी मां को सलामी दी गई। तदुपरांत फूल रथ की परीक्रमा शुरू हुई। किलेपाल क्षेत्र के ग्रामीणों ने रथ खींचना आरंभ किया। गोलबाजार, मिताली चौक होती हुई रथ यात्रा दंतेश्वरी मंदिर के समक्ष समाप्त हुई।
बताया जाता है कि जोगी बिठाई विधान के बाद लगातार पांच दिनों तक मावली देवी की फूल रथ से परीक्रमा करवाई जाती है।इसके उपरांत दशमी को भीतर रैनी विधान के तहत रथयात्रा कुमडाकोट तक निकाली जाएगा। फूल रथ परीक्रमा के शुभारंभ अवसर पर बस्तर राजपरिवार के सदस्य कमल चंद भंजदेव, दहशरा समिति अध्यक्ष सांसद दिनेश कश्यप, उपाध्यक्ष लच्छू राम, सचिव तहसीदार आनंद राम नेताम समेत काफी संख्या में मांझी-चालकी, मेंबर-मेंबरीन समेत ग्रामीण मौजूद थे।
एक बकरे की बलि के साथ मंगरमुंही रस्म पूरी
इधर भीतर रैनी विधान के लिए आठ पहियों का रथ निर्माण जारी है। सोमवार को मंगरमुंही रस्म एक बकरे की बलि के साथ पूरी की गई। रथ के एक्सल को स्थानीय बोली में मगरमुंही कहा जाता है। चलन के अनुसार रथ में इसे लगाए जाने के पूर्व एक बकरे की बलि देने का रिवाज है। शाम छह बजे दशहरा कमेटी की ओर से लाए गए बकरे की साइज छोटी देखकर रथ बनाने वाले कारीगरों में असंतोष व्याप्त हो गया। उन्होंने बड़ा बकरा लाए जाने की मांग की। काफी समझाइश के बाद कारीगरों ने बकरा स्वीकार किया।