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रामनगरी में आराध्य राम के विवाह का मना जश्न

राम विवाहोत्सव की धूम में रामानंदीय संतों की आचार्य पीठ दशरथमहल बड़ास्थान में संचालित रतन बेन का प्रवचन रस घोल रहा है। उन्होंने भगवान के विवाह के पूर्व प्रसंगों की मार्मिक मीमांसा की। पीठ आचार्य महंत देवेंद्रप्रसादचार्य के अनुसार भगवान की विवाह लीला हर दृष्टि से मंगलकारी है और रतन

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 26 Nov 2014 10:46 AM (IST)Updated: Wed, 26 Nov 2014 10:50 AM (IST)
रामनगरी में आराध्य राम के विवाह का मना जश्न

अयोध्या। राम विवाहोत्सव की धूम में रामानंदीय संतों की आचार्य पीठ दशरथमहल बड़ास्थान में संचालित रतन बेन का प्रवचन रस घोल रहा है। उन्होंने भगवान के विवाह के पूर्व प्रसंगों की मार्मिक मीमांसा की। पीठ आचार्य महंत देवेंद्रप्रसादचार्य के अनुसार भगवान की विवाह लीला हर दृष्टि से मंगलकारी है और रतन बेन के अलावा लीला के मंचन एवं विवाह की रस्म से राम विवाह को जीवंत करने का ह्रदय से प्रयास किया जा रहा है।

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सात सौ साल पुराने मंदिर का हो गया कायाकल्प-

मां सीता के प्रति पौधरोपड़ से आस्था अर्पित होगी। यह पहल है, ज्योतिषाचार्य स्वामी हरदयाल की। उन्होंने बताया कि मां जानकी को वन अत्यंत प्रिय था। वाल्मीकि के आश्रम में वे वनदेवी के नाम से जानी जाती थीं। वन प्रसंग में मृग की इच्छा जताने से भी सीता के वन्य प्रेम का परिचय मिलता है। स्वामी हरिदयाल शनिवार को प्रात: नजरबाग स्थित अपने आश्रम शनिधाम परिसर में वट, पीपल, पाकड़, आम एवं जामुन के पौध रोपित करेंगे। उन्होंने कहा कि हिरण्यमय वन की अवधारणा के अनुरूप हिरन पहले से ही पाल रखा गया है। शनिवार अगहन शुक्ल सप्तमी की वह तिथि है, जब मां सीता विवाहोपरांत राम संग अयोध्या पहुंची थीं।

रामायण मेला में संस्कृति विभाग अपने कलाकार भेजेगी। बुधवार को मुंबई से भोजपुरी लोक गायक सुरेश शुक्ल, गोरखपुर के भजन गायक राकेश् उपाध्याय, फैजाबाद की लोक गायक सुरभिपाल, लोक नृत्य कलाकार मुकेश कुमार तथा अयोध्या की रामलीला मंडली के जैराम दास कला का प्रदर्शन करेंगे।

लक्ष्मण के साथ भगवान राम फुलवारी में घुसकर फूल तोडऩे की कोशिश करते हैं, सखियां उन्हें ऐसा करने से रोकती हैं। वह कहती हैं कि यदि उन्हें फूल तोडऩा हो तो जानकी जी के नाम का जयकारा लगाएं। अंतत: राम ऐसा करते हैं। इस बीच जानकी की राम से सीधी भेंट नहीं होती पर सखियां उनके ह्रदय में राम की उपिस्थिति पैदा कर देती हैं।

यह परिदृश्य है, प्रतिष्ठित मंदिर जानकीमहल में विवाहोत्सव की पूर्व बेला पर फुलवारी प्रसंग के का। आयोजकों ने परिदृश्य उपस्थित करने एवं कलाकारों ने सधे अभिनय से भगवान राम एवं सीता में अनुराग को जीवंत किया। इस अवसर पर महंत नृत्यगोपाल दास एवं कौशल किशोरशरण जैसे शीर्ष महंत मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद रहे। विवाहोत्सव की रस्म सायं सीता के कोहबर प्रवेश से आगे बढ़ी, जहां सीता ने गौरी-गणेश की पूजा की। सायं गर्भगृह के सम्मुख संगीत की महफिल सजी। रामलीला के क्रम में बुधवार को धनुष यज्ञ एवं परशुराम-लक्ष्मण संवाद का होगा। उत्सव का शिखर गुरुवार को अपराह्न राम बरात निकलने के साथ अभिव्यक्त होगा। विवाहोत्सव के लिए प्रसिद्ध एक अन्य पीठ विअहूतिभवन में विवाह पूर्व रस्म के तहत भगवान राम के स्वरूप को हल्दी-तिलक लगाया गया। बुधवार को सीता जी को हल्दी लगाने की रस्म होगी। गुरुवार को विवाह एवं राम बरात, शुक्रवार को कलेवा के बाद 30 नवंबर को चौथ की रस्म के साथ विअहूतिभवन के विवाह का समापन होगा।

राम विवाह 27 को-इटियाथोक क्षेत्र के ग्राम रुदापुर स्थित हनुमानगढ़ी मंदिर में 27 नवंबर को राम विवाह का आयोजन किया जाएगा। यह जानकारी देते हुए बाबा बलरामदास ने बताया कि गांव में रथ यात्रा निकाला जाएगा, जिसमें सैकड़ों लोग हिस्सा लेंगे।

समारोह के संयोजक महंत राघवदास ने बताया कि मंदिर के लिए यह अवसर विशेष है और सैकड़ों साल पुरानी विरासत का कायाकल्प हो रहा है। मंदिर की स्थापना सात सौ साल पहले की ज्ञात होती है। रामकोट मुहल्ला स्थित इसी मंदिर के इर्द-गिर्द राम जन्मस्थान एवं रामगुलेला मंदिर भी अत्यंत प्राचीन मंदिर हैं। जनवरी 1993 को रामजन्मभूमि के इर्द-गिर्द भूमि अधिग्रहण की चपेट में आकर रामजन्मस्थान मंदिर अपना अस्तित्व कब का खो चुका है, जबकि रामगुलेला मंदिर जर्जर हो रहा है।

राधामोहनदास जगन्नाथ मंदिर के संस्थापक थे। बीच के कई आचार्यों का नाम नहीं ज्ञात होता पर वर्तमान महंत राघवदास अनेक पूर्वाचार्यों का स्मरण है। सन् 2005 में महंत रामकृपालदास से महंती ग्रहण करने वाले राघवदास प्राचीन विरासत के कायाकल्प पर आनंदित हैं। उन्होंने भगवान के विवाहोत्सव को भी आनंद का प्रतीक बताया। कहा कि भगवान का विवाह हमें शक्ति-समृद्धि की उपलब्धि से जुडऩे की ऊर्जा प्रदान करता है। मंदिर में बुधवार को मंडपाच्छादन से शुरू रामविवाहोत्सव की रस्म से शुरू होगी, अगले दिन भांवर पड़ेगी। तदुपरांत रामकलेवा की रस्म निभेगी।


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