Rakshabandhan Pauranik Katha: जब कृष्ण ने द्रोपदी की राखी का रखा था मान, जानें कैसे की थी मदद
Rakshabandhan Pauranik Katha रक्षाबंधन को लेकर प्राचीन काल की एक और कथा प्रचलित है। यह कथा श्रीकृष्ण और द्रोपदी की है। इस कथा का वर्णन हम यहां कर रहे हैं।
Rakshabandhan Pauranik Katha: रक्षाबंधन को लेकर प्राचीन काल की एक और कथा प्रचलित है। यह कथा श्रीकृष्ण और द्रोपदी की है। इस कथा का वर्णन हम यहां कर रहे हैं। इस कथा में द्रोपदी के चीरहरण की गाथा है। एक कथा के अनुसार, जब सुदर्शन चक्र से श्रीकृष्ण ने शिशुपाल का वध किया था तब उनकी उंगली कट गई थी। उनकी उंगली से बहुत रक्त बह रहा था। तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी फाड़कर श्रीकृष्ण की अंगुली पर बांधी दी थी। इसके बदले श्रीकृष्ण ने उन्हें आशीर्वाद दिया था कि वो उनकी साड़ी की कीमत जरूर अदा करेंगे। यही कारण है कि श्रीकृष्ण ने द्रौपदी की साड़ी को बढ़ाकर उन्हें लौटाया और उनकी लाज बचाई थी।
महाभारत में द्युतक्रीड़ा के समय युद्धिष्ठिर ने अपनी पत्नी द्रौपदी को दांव पर लगा दिया था। हालांकि, युद्धिष्ठिर इस क्रीड़ा को हार गए थे। दुर्योधन की ओर से मामा शकुनि ने द्रोपदी को जीत लिया था। द्रोपदी को अपमानित करने के लिए दुशासन द्रौपदी को बालों से पकड़कर घसीटते हुए सभा में ले आया था। जहां एक तरफ द्रोपदी का अपमान हो रहा था। वहीं, भीष्मपितामह, द्रोणाचार्य और विदुर जैसे न्यायकर्ता लोग यह सब मूकदर्शक बनकर देख रहे थे।
पूरी सभा में दुर्योधन ने द्रोपदी का चीर-हरण किया। यह देखकर सभी मौन थे। वहीं, पांडव भी द्रोपदी की लाज नहीं बचा पा रहे थे। सभी को मौन देख द्रोपदी ने वासुदेव श्रीकृष्ण को आंखें बंद कर याद किया। उन्होंने श्रीकृष्ण का आव्हान किया। उन्होंने कहा, ''हे गोविंद! आज आस्था और अनास्था के बीच युद्ध है। मुझे देखना है कि क्या सही में ईश्वर है।'' द्रोपदी की लाज बचाने और उनकी राखी की लाज रखने के लिए श्रीकृष्ण ने सभी के समक्ष एक चमत्कार किया। वो द्रोपदी की साड़ी तक तक लंबी करते गए जब तक दुश्सान थक कर बेहोश नहीं हो गया। उस सभा में मौजूद सभी लोग इस चमत्कार को देखकर हैरान रह गए।