राहु और केतु की खराब दशा में नाग पंचमी की पूजा से बड़ी राहत मिलती है
नागों की इसी महिमा का गुणगान है नाग पंचमी। श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाने वाला पर्व असल में शिव जी की ही पूजा है।
भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भागवत गीता में कहा है, 'मैं नागों में अनंत (शेषनाग) हूं'। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार नागपंचमी के दिन नाग जाति की उत्पत्ति हुई थी। महाभारत में वर्णित एक कथा के अनुसार अर्जुन के पुत्र से जुड़ी है अभिमन्यु के बेटे राजा परीक्षित ने एक बार तपस्या में लीन ऋषि के गले में मृत सांप डाल दिया था। इस पर ऋषि के शिष्य श्रृंगी ऋषि ने क्रोधित होकर शाप दिया कि यही सर्प सात दिनों के पश्चात जीवित होकर डस लेगा,ठीक सात दिनों के पश्चात उसी तक्षक सर्प ने जीवित होकर राजा को डसा।
तब क्रोधित होकर राजा परीक्षित के बेटे जन्मजय ने विशाल 'सर्प यज्ञ' किया जिसमे सर्पो की आहुतियां दी। इस यज्ञ को रुकवाने हेतु महर्षि आस्तिक आगे आए। उनका आगे आने का कारण यह था कि महर्षि आस्तिक के पिता आर्य और माता नागवंशी थी।
इसी से वे यज्ञ होते देख न देख सके। सर्प यज्ञ रुकवाने, लड़ाई को ख़त्म करने पुनः अच्छे सबंधों को बनाने हेतु आर्यों ने स्मृति स्वरूप अपने त्योहारों में 'सर्प पूजा' को एक त्योहार के रूप में मनाने की शुरुआत की।
अगर आप सांप से डरते हैं तो सुबह उठते ही अनंत, वासुकि, शेष, पद्मनाभ, कंबल, शंखपाल, धृतराष्ट्र, तक्षक और कालिया, इन नौ देव नागों का स्मरण कीजिए। आपका डर खत्म होगा। नित्य इनका नाम स्मरण करने से धन भी मिलता है, खासकर जिनकी कुंडली में राहु और केतु अपनी नीच राशियों- वृश्चिक, वृष, धनु और मिथुन में हैं तो अवश्य ही पूजा करनी चाहिए।
राहु और केतु की खराब दशा से गुजर रहे लोगों को नाग पंचमी की पूजा से बड़ी राहत मिलेगी। नागों की इसी महिमा का गुणगान है नाग पंचमी। दत्तात्रेय जी के 24 गुरुओं में एक नाग देवता भी थे। श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाने वाला पर्व असल में शिव जी की ही पूजा है। गले में वासुकि नाग जो उन्होंने धारण कर रखा है।