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टपकती जल की बूंदों से भगवान तर रहेंगे और काशीवासियों का नित कल्याण करेंगे

भक्त व भगवान के रिश्ते की अबूझ पहेली, अंतरंगता और आत्मीयता ऐसी कि जब चाहे तब तीनों लोकों के पालनहार को गोपियों के रूप में छछिया भर छाछ पर तिगनी का नाच नचा दें या मन आए तो शबरी की तरह जूठे बेर का भोग लगा दें।

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 10 May 2016 12:20 PM (IST)Updated: Tue, 10 May 2016 03:17 PM (IST)
टपकती जल की बूंदों से भगवान तर रहेंगे और काशीवासियों का नित कल्याण करेंगे

वाराणसी । भक्त व भगवान के रिश्ते की अबूझ पहेली, अंतरंगता और आत्मीयता ऐसी कि जब चाहे तब तीनों लोकों के पालनहार को गोपियों के रूप में छछिया भर छाछ पर तिगनी का नाच नचा दें या मन आए तो शबरी की तरह जूठे बेर का भोग लगा दें। अब भक्तों की आस्था के उफनाते सागर में आप भी गोता लगाएं और विभोर हो जाएं। आस्था और प्रभु के प्रति भक्तों का प्रेम ऐसा कि सूरज के ताप से खुद अकुलाए लेकिन प्रभु के प्रति उनके श्रद्धा के भाव सोमवार को हर ओर नजर आए। वैशाख की अब गर्मी से देवाधिदेव महादेव को निजात दिलाने के लिए भक्तों ने देवाधिदेव महादेव दरबार में जलधरी (फव्वारा) लगाई। भाव यह कि इससे टपकती जल की शीतल बूंदों से भगवान तर रहेंगे और काशीवासियों का नित कल्याण करेंगे।

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काशी विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह में बाबा की दोपहर भोग आरती के पहले चारों द्वारों पर खस की चटाइयां लगाई गईं ताकि काशीपुराधिपति लू-ताप से महफूज रहें। ज्योतिर्लिंग के ठीक उपर रजत जलधरी भी लगाई गई। वैशाख व जेठ की तपिश से बाबा को निजात दिलाने के लिए पूरे दिन जलधरी से जल की बूंदें टपकेंगी और शीतल करती रहेंगी। परंपरानुसार जलधरी सावन की पूर्णिमा तक लगी रहेगी।

इसके अलावा सोनारपुरा स्थित सनातन गौड़ीय मठ में प्रभु श्रीकृष्ण को पंचामृत स्नान करा कर चंदन का लेप लगाया गया। नवीन वस्त्र धारण कराने के साथ ही फूलों का मुकुट, हार, बाजूबंद और करधनी से नटवर नागर वेश सजाया गया। भगवान फूलों से महमह सिंहासन पर विराजे। मंदिर का कोना कोना बेला, गेंदा, गुलाब की सुवास से गमकता रहा। शाम 6.45 बजे दर्शन खुला और चंदन शृंगार की झांकी के दर्शन के लिए भक्तों की कतार लग गई। दर्शन पूजन किया और चंदन शृंगार प्रसंग का श्रवण कर विभोर हुए। परिक्रमा, आरती के साथ भक्तों ने 'हरे कृष्ण हरे कृष्णÓ महामंत्र दोहराया। अलग-अलग रुपों में प्रभु का शृंगार 21 दिन तक होगा।

स्नान, व्रत विधान और दर्शन-दान अक्षय तृतीया पर धर्मानुरागियों ने गंगा स्नान किया। सविधि संकल्पित होकर व्रत रखा और पूजन अनुष्ठान किया। शीत तासीर वाली वस्तुओं का गरीबों में दान भी किया। इसके लिए गंगा तट और मंदिरों में सवेरे से ही कतार लगी रही।

धन की बौछार : सुख-समृद्धि प्रदान करने वाला पर्व अक्षय तृतीया पर सोमवार को सराफा बाजार गुलजार रहा। आभूषणों की खरीद के लिए दुकानों व शोरूमों में सुबह से ही खरीदारों की जुटन होने लगी थी। यह सिलसिला शाम तक चलता रहा। पिछले वर्ष से भले ही सोने व चांदी के दाम चढ़ गए हों, चूंकि मौका त्योहार का है, और रस्म भी निभानी है। ऐसे में लोगों के उत्साह में कोई कमी नहीं रही। कारोबारियों का कहना है कि फुटकर और थोक सराफा बाजार में लगभग तीन तीन सौ करोड़ रुपये का कारोबार हुआ होगा। ऐसा माना जाता है कि इस दिन सोना खरीदने से धन-संपत्ति का भंडार अक्षय रहता है। जीवन में समृद्धि आती है। इस तिथि को अपने लिए या फिर किसी को उपहार देने के लिए सोने की खरीदारी का रिवाज है।


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