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Pitru Paksha 2020: क्या बेटियां भी कर सकती हैं श्राद्ध एवं तर्पण? जानें क्या कहता है शास्त्र

Pitru Paksha 2020 पितृपक्ष में आपने पुरुषों को तर्पण और पिंडदान करते हुए देखा है। सवाल यह है कि जिनको पुत्र नहीं है ऐसे में क्या बेटी तर्पण एवं पिंडदान कर सकती है?

By Kartikey TiwariEdited By: Published: Wed, 02 Sep 2020 10:00 AM (IST)Updated: Wed, 02 Sep 2020 10:00 AM (IST)
Pitru Paksha 2020: क्या बेटियां भी कर सकती हैं श्राद्ध एवं तर्पण? जानें क्या कहता है शास्त्र
Pitru Paksha 2020: क्या बेटियां भी कर सकती हैं श्राद्ध एवं तर्पण? जानें क्या कहता है शास्त्र

Pitru Paksha 2020: आश्विन मास के कृष्ण पक्ष का विशेष धार्मिक महत्व है। 15 दिनों का यह समय पितरों को समर्पित होता है, जिसे पितृपक्ष के नाम से जाना जाता है। पितृपक्ष के दौरान पितरों के श्राद्ध कर्म में तर्पण, पिंडदान आदि किया जाता है। इसका प्रारंभ हमेशा आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से होता है। पितृपक्ष में आपने पुरुषों को तर्पण और पिंडदान करते हुए देखा है। सवाल यह है कि जिनको पुत्र नहीं है, ऐसे में क्या बेटी तर्पण एवं पिंडदान कर सकती है? आइए जानते हैं कि धर्म शास्त्र में क्या कहा गया है।

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अविवाहित बेटी को श्राद्ध-तर्पण का अधिकार

ज्योतिषाचार्य चक्रपाणि भट्ट के अनुसार, भारतीय धर्म-शास्त्र में कन्या का स्थान उच्च माना गया है। संसार का सर्वश्रेष्ठ एवं फलदायक दान कन्या-दान कहा गया है। अतः पुत्र के अभाव में कन्या के द्वारा दाह-संस्कार का शास्त्रोक्त विधान है। किन्तु शास्त्र में इसके लिए शर्त रखते हुए कहा गया है कि उसी कन्या को श्राद्ध-तर्पण का अधिकार है, जिसका दान न किया गया हो। अर्थात् विवाह के बाद कन्या को अपने माता-पिता की श्राद्ध करने का अधिकार नहीं है, किन्तु कुमारी कन्याएँ श्राद्ध की अधिकारिणि होती हैं, इसीलिए कन्या के पुत्र अर्थात् नाती (जिसे शास्त्र ने दौहित्र नाम दिया है) के द्वारा श्राद्ध-तर्पण क्रिया से मोक्ष प्राप्ति बताई गई है।

पितर ग्रहण नहीं करते विवाहित कन्या के श्राद्ध

कन्या के द्वारा किये जाने वाले श्राद्ध-तर्पण का प्रमाण देते हुए शास्त्रोक्त है- “ये के चस्मातकुले जाता अपुत्रा गोत्रिणो मृता। ते तृप्यन्तु कन्या दत्तम श्राद्धकर्म विचारयेत ।।” अर्थात् जिसके कुल (वंश) में कोई न हो तथा पुत्रहीन होकर मृत्यु को प्राप्त व्यक्ति की श्राद्ध करने के लिए कन्या का विचार करना चाहिए। विवाहित कन्या के द्वारा की गई श्राद्ध को उसके पितर ग्रहण इसलिए नहीं करते क्योंकि उस कन्या का विवाहोपरांत गोत्र बदल जाता है और श्राद्ध-कर्म सगोत्रीय के द्वारा ही मान्य बताई गई है। अतः स्पष्ट है कि विशेष परिस्थिति में ही कन्या को श्राद्ध करने का अधिकार है। नाती (दौहित्र) को पूर्णकालिक श्राद्ध-तर्पण का अधिकार प्राप्त है।

विवाहित बेटी अपने बेटे से कराए पितरों का श्राद्ध

यदि आप विवाहित हैं और आपके कोई भाई नहीं हैं, तो आप अपने माता-पिता के कुल के पितरों का श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान अपने पुत्र से करा सकती हैं।


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