पितरों को तृप्त करने का महापर्व शुरू
पूर्वजों के प्रति श्रद्धा का महापर्व पितृपक्ष शुक्रवार 20 सितंबर से शुरू हो रहा है। आश्रि्वन कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक पितरों का श्राद्ध करने की परंपरा है। पितृपक्ष पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने, उनका स्मरण करने और उनके प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का महापर्व है। वहीं कुछ लोगों ने बृहस्पतिवार को अपने
जम्मू, जागरण संवाददाता। पूर्वजों के प्रति श्रद्धा का महापर्व पितृपक्ष शुक्रवार 20 सितंबर से शुरू हो रहा है। आश्रि्वन कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक पितरों का श्राद्ध करने की परंपरा है। पितृपक्ष पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने, उनका स्मरण करने और उनके प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का महापर्व है। वहीं कुछ लोगों ने बृहस्पतिवार को अपने पितरों को तर्पण किया।
इस अवधि में पितृगण अपने परिजनों के समीप विविध रूपों में मंडराते हैं और अपने मोक्ष की कामना करते हैं। परिजनों से संतुष्ट होने पर पूर्वज आशीर्वाद देकर हमें अनिष्टों से बचाते हैं। पंद्रह दिन तक मनाए जाने वाले इस पर्व को लेकर ऐसी मान्यता है कि इन दिनों पूर्वज पिंडदान व तिलांजलि की आशा से पितृलोक से पृथ्वी लोक पर आते हैं। इसलिए श्रद्धों को पितरों का पर्व भी कहा जाता है।
मान्यता है कि मृत्यु के चार वर्षो के उपरांत पितरों का श्राद्ध पक्ष में श्राद्ध करने का विधान है। पितृ पक्ष में दिवंगत पितृ अपनी संतानों के घर ब्राह्मणों के रूप में आकर श्रद्धा से दिया गया अन्न-जल ग्रहण करके अपनी भूख और प्यास मिटाते हैं, जिसका प्रभाव वर्ष भर रहता है।
पंडित तिलक राज शास्त्री के अनुसार पितरों के कर्ज को चुकाने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए मनाए जाने वाले इस पर्व में जो श्राद्ध करता है, उसे पंद्रह दिनों तक ब्रह्मचर्य पालन करना चाहिए और इस दौरान मांसाहारी भोजन से परहेज करना चाहिए। इसके अलावा श्राद्ध करने वाला अगर इन पंद्रह दिनों में प्रतिदिन स्नान करके चावल, तिल, जौ व पानी लेकर पीपल के पेड़ को चढ़ाए तो पितरों के कर्ज से मुक्ति मिल जाती है। श्राद्धों के दौरान जो भी किया जाता है, उसे पितरों के लिए माना जाता है। यही कारण है कि लोग काफी दान-पुण्य करते हैं। शास्त्री के अनुसार श्राद्धों के दौरान केवल वही चीज नहीं खरीदनी चाहिए जिनके साथ जिंदगी भर का साथ रहने वाला है, जैसे घर, वाहन व अन्य चीजें। छोटी-मोटी चीजें खरीदने में कोई हर्ज नहीं है।
श्राद्ध की विधि
उत्तम कर्मो द्वारा उपार्जित धन से पितरों का श्राद्ध करना उचित है। छल, कपट, चोरी और ठगी से कमाए हुए धन से कदापि श्राद्ध न करें। संध्या काल आने पर काम, क्रोध से रहित एवं पवित्र होकर श्राद्ध कर्म के योग्य श्रेष्ठ ब्राह्मणों को निमंत्रण दें। श्राद्ध के दिन प्रात:काल नित्य क्रियाओं से निर्वित होकर श्राद्ध सामग्री एकत्र कर प्रीति पूर्वक श्रद्धा अनुसार अपने पितरों के प्रति अन्न-जल दान करें जिसका दूसरा नाम श्राद्ध है।
श्राद्ध पक्ष की अवधि
श्राद्ध पक्ष 20 सितंबर से 4 अक्टूबर के मध्य रहेगा जिसमें पूर्णिमा का श्राद्ध 19 सितंबर को संपादित होगा। प्रतिपदा का श्राद्ध 20 को, द्वितीया का श्राद्ध 21 को, तृतीया का श्राद्ध 22 को, चतुर्थी का श्राद्ध 23 को, पंचमी का श्राद्ध 24 को, षष्ठी का श्राद्ध 25 को, सप्तमी का श्राद्ध 26 को, अष्ठमी का श्राद्ध 27 को, नवमीं का श्राद्ध 28 को, दशमी का श्राद्ध 29 को, एकादशी का श्राद्ध 30 को, द्वादशी का श्राद्ध पहली अक्टूबर को, त्रयोदशी का श्राद्ध 2 अक्टूबर, चतुर्दशी का श्राद्ध 3 अक्टूबर को जबकि अमावस्या, सर्व पितृ श्राद्ध चार अक्टूबर को होगा जिसके साथ ही पितृ विसर्जन का कार्य किया जाएगा।
विशेष
अगर कोई किसी कारणवश पितृपक्ष की पंद्रह तिथियों में श्राद्ध नहीं कर पाता है तो उस स्थिति में अमावस्या के दिन श्राद्ध करने का विधान है।
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