पितृ विसर्जन: लाखों लोगों ने दी पितरों को जलाजंलि
माहालया को यहां के अंत:सलिल फल्गु नदी व अन्य सरोवरों में शुक्रवार को लाखों ने अपने-अपने पितरों का जलाजंलि देकर आशीर्वाद प्राप्त किया। जलाजंलि देने का सिलसिला सूर्योदय होने के साथ शुरू हुआ। सनातन धर्म के मानने वाले श्रद्धालु काफी संख्या में शुक्रवार की सुबह से ही विष्णुपद मंदिर स्थित देवघाट पहुंचे। जहां श्रद्धालुओं ने प
गया/वाराणसी। माहालया को यहां के अंत:सलिल फल्गु नदी व अन्य सरोवरों में शुक्रवार को लाखों ने अपने-अपने पितरों का जलाजंलि देकर आशीर्वाद प्राप्त किया। जलाजंलि देने का सिलसिला सूर्योदय होने के साथ शुरू हुआ।
सनातन धर्म के मानने वाले श्रद्धालु काफी संख्या में शुक्रवार की सुबह से ही विष्णुपद मंदिर स्थित देवघाट पहुंचे। जहां श्रद्धालुओं ने पुरोहित की उपस्थिति में जलाजंलि देने का कार्य शुरू किया। भीड़ अधिक होने के कारण जिला प्रशासन को काफी मशक्त करनी पड़ी। फिर भी देवघाट, विष्णुपद इलाके में पुलिस की भारी बंदोबस्ती की गई थी। पुलिस बंदोबस्ती के कारण स्थानीय श्रद्धालुओं ने विधिवत और अपने सुविधा के अनुसार जलाजंलि कार्यक्त्रम को सम्पन्न कराया।
देवघाट के अलावे अंत:सलिल फल्गु नदी के तट पर स्थित पितामहेश्वर घाट, ब्राह्मणी घाट, सिढि़या घाट, पंचायती अखाड़ा आदि स्थानों पर भी स्थानीय श्रद्धालुओं ने अपनी सुविधा के अनुसार अपने-अपने पितरों को जल अर्पित किया। अपनी शक्ति के अनुसार यजमान ने पुरोहित को दान व दक्षिणा में अर्पित किए। जलाजंलि देने और दान करने का कार्य दोपहर तक चलता है।
सुफल के साथ ही कर्मकांड संपन्न-
15 दिनों तक चलने वाली पिंडदान यानि कर्मकांड का कार्य शुक्रवार को अक्षयवट वृक्ष के नीचे सुफल के साथ ही सम्पन्न हो गया। पिंडदानी अपने-अपने जिले के पुरोहित से सुफल लेने के लिए सुबह से अक्षयवट पहुंचे। जहां पहले से अलग-अलग जिले पंडाजी एवं परिवार के अन्य सदस्य पहले विराजमान थे। पंडाजी स्वयं शय्या पर विराजमान थे। ठीक उनके नीचे और आसपास यजमान विराजमान थे। सुफल देने से पहले पंडाजी अपने यजमान से यह बार-बार पूछ रहे थे कि गयाधाम में पिंडदान करने में कोई परेशानी तो नहीं। कर्मकांड में कोई व्यवधान नहीं आया। यह बात सुनकर यजमान ने कहा कि पुरोहित जी यह तो पितरों का गयाधाम है। अगर थोड़ी बहुत कष्ट हुआ है। उसे पितरों का आशीर्वाद समझकर भूल गए है। ऐसे कुल मिलाकर यहां कर्मकांड पूरे विधि विधान के साथ हुआ है। वश आप (पंड़ाजी ) आशीर्वाद दे दीजिए तो मेरा कर्मकांड यानि पिंडदान करने का सुफल मिल जाएगा। कई यजमान पंडाजी से यह पूछ रहे थे कि सुफल में क्या करना होगा। यह पहले से मालूम है कि कुछ दान करना पड़ता है। लेकिन यह नहीं मालूम है कि क्या और कितना दान करना पड़ता है? इसके बारे में थोड़ी जानकारी दें। कई पंडाजी ने कहा कि यह तो आपके उपर निर्भर करता है कि पूर्वज के लिए गयाधाम में पिंडादान करने आए है, तो क्या दान करना चाहते है। दान स्वेच्छा का चीज है। पंडाजी ने कहा कि फिर भी दान में कुछ लोग सोना, चांदी, रुपया-पैसा, कपड़ा, जमीन आदि दान करते हैं। दान पूर्ण रूपेण स्वेच्छा और श्रद्धा का चीज है। यह बात सुनकर पिंडदानियों ने अपनी शक्ति के अनुसार पूरी श्रद्धा के साथ दान किया। उसके बाद पंडा जी ने उन्हें गयाधाम से पितराें की मुक्ति देने और जीवन में सदा कल्याण होगा। ऐसा आशीर्वाद देकर यहां से जाने की अनुमति दी। अक्षयवट में पूरे दिन और संध्या बेला में सुफल देने का कार्य चलता रहा।
बोधगया-पितृपक्ष में अपने पितरों के मोक्ष की कामना हेतु पिंडद ान के विधान को संपन्न कराने के पश्चात गयापाल पंडाजी से सुफल प्राप्त करने की परंपरा कालांतर से चली आ रही है। यह परंपरा आज भी जीवंत है। वैसे तो एक दिन, दो दिन, तीन दिन या इससे अधिक दिन का पिंडदान करने आने वाले आस्थावान सनातन धर्मावलंबी वैसे तो पिंडदान के विधान को संपन्न कर अपने-अपने घराने के पंडाजी से सुफल प्राप्त कर लेते हैं। लेकिन पितृपक्ष समापन के दिन यानि महालया को अक्षयवट वेदी पर सुफल प्राप्त करने वाले आस्थावानों की भीड़ उमड़ती है। ये सभी वैसे पिंडदानी होते हैं। जो एक पखवारे तक गयाजी प्रवास कर एक-एक दिन पिंडदान के विधान को अलग-अलग वेदी पर पूरा करते हैं। पंडाजी से सुफल प्राप्त करने के बाद आस्थावानों की भीड़ भगवान विष्णु के अवतार भगवान बुद्ध को नमन करने के लिए उमड़ पड़ी। सभी आस्थावान विश्वदाय धरोहर महाबोधि मंदिर में भगवान बुद्ध को दर्शन किए। बाहर निकलते वक्त ऐतिहासिक जगन्नाथ मंदिर और उसके बाद अन्य बौद्ध महाविहार का परिभ्रमण किए। वहीं, पितृपक्ष विसर्जन के दिन भी मंदिर परिसर के मुचलिंद सरोवर क्षेत्र में कुछेक पिंडदानी अपने पूर्वजों के मोक्ष हेतु पिंडदान के कर्मकांड करते देखे गए। यह क्षेत्र पिंडदान के मंत्रोच्चार से गुंजायमान था।
भूरहा में अंतिम दिन सैंकड़ों पिंडदानियों ने किया तर्पण-
ज्ञान एवं मोक्ष की भूमि दुर्वासानगर भूरहा में पितृपक्ष के अंतिम दिन सैंकड़ों पिंडदानियों ने भूरहा नदी में स्नान कर तर्पण किया। अयोध्या से चलकर गया श्रद्ध के लिए जाने के क्त्रम में राम, लक्ष्मण, जानकी दुर्वासा नगर में रात्रि विश्रम कर तर्पण किया था। गुरूआ प्रखंड के राजद के प्रवक्ता ललित यादव ने भूरहा में पिंड एवं तर्पण कर बताया की भूरहा में प्रत्येक वर्ष तर्पण करने से आत्मा की बहुत शांति मिलती है। 1निप्र , बोधगया (गया): पितृपक्ष में अपने पितरों के मोक्ष की कामना हेतु पिंडद ान के विधान को संपन्न कराने के पश्चात गयापाल पंडाजी से सुफल प्राप्त करने की परंपरा कालांतर से चली आ रही है। यह परंपरा आज भी जीवंत है। वैसे तो एक दिन, दो दिन, तीन दिन या इससे अधिक दिन का पिंडदान करने आने वाले आस्थावान सनातन धर्मावलंबी वैसे तो पिंडदान के विधान को संपन्न कर अपने-अपने घराने के पंडाजी से सुफल प्राप्त कर लेते हैं। लेकिन पितृपक्ष समापन के दिन यानि महालया को अक्षयवट वेदी पर सुफल प्राप्त करने वाले आस्थावानों की भीड़ उमड़ती है। ये सभी वैसे पिंडदानी होते हैं। जो एक पखवारे तक गयाजी प्रवास कर एक-एक दिन पिंडदान के विधान को अलग-अलग वेदी पर पूरा करते हैं। पंडाजी से सुफल प्राप्त करने के बाद आस्थावानों की भीड़ भगवान विष्णु के अवतार भगवान बुद्ध को नमन करने के लिए उमड़ पड़ी। सभी आस्थावान विश्वदाय धरोहर महाबोधि मंदिर में भगवान बुद्ध को दर्शन किए। बाहर निकलते वक्त ऐतिहासिक जगन्नाथ मंदिर और उसके बाद अन्य बौद्ध महाविहार का परिभ्रमण किए। वहीं, पितृपक्ष विसर्जन के दिन भी मंदिर परिसर के मुचलिंद सरोवर क्षेत्र में कुछेक पिंडदानी अपने पूर्वजों के मोक्ष हेतु पिंडदान के कर्मकांड करते देखे गए। यह क्षेत्र पिंडदान के मंत्रोच्चार से गुंजायमान था।
कुंड-सरोवरों व गंगा-वरुणा के घाटों पर उमड़ी वंशजों की भीड़-
तर्पण-श्राद्ध और श्रद्धा के अनगिन भाव अर्पण कर वंशजों ने शुक्रवार को पितृदेवों को विदाई दी। पितरों के प्रति समर्पण के पुण्यकाल पितृपक्ष के अंतिम दिन घाट कुंडों पर परंपरा जीवंत दिखाई दी। अंजलि भर जल तिल अर्पित किया। पिंडदान कर सर्वविध मंगल कल्याण की कामना की। 1क्वार अमावस्या यानी पितृविसर्जन पर इसके लिए गंगा समेत नदियों के घाटों और विभिन्न कुंडों के पाटों पर स्थानीयजनों के साथ ही आसपास के जिले-प्रांतों और विदेश तक से लोगों का जुटान हुआ। मुक्ति कुंड पिशाचमोचन पर लोगों की सर्वाधिक भीड़ रही। मुंह अंधेरे से ही आस्था के भाव फूटे और दोपहर तक तर्पण का क्त्रम जारी रहा। इस दौरान सर्वपैत्री श्रद्ध भी किया गया। 1इसमें ऐसे पितर जिनकी मृत्यु अमावस्या के दिन हुई या जिसकी मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं उनका भी पिंडदान किया गया। दशाश्वमेध, शीतलाघाट, अस्सी, तुलसीघाट, मीरघाट, गायघाट, केदारघाट, वरुणा तट पर शास्त्री घाट के अलावा प्रमुख कुंड-सरोवरों पर पुरोहितों के निर्देशन में श्रद्ध कर्म संपादित किए गए। पिंडदान आदि से निवृत्त होकर लोगों ने क्षौर कर्म किया। घरों में पुरोहितों को भोज दिया और दान दक्षिणा देकर विदा किया। इसके साथ ही पुण्य काल में धरती पर पधारे पितर भी तृप्त हो अपने धाम को प्रस्थान कर गए।
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