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पिंडदान का कर्मकांड सम्पन्न

15 दिनों तक चलने वाली पिंडदान का कार्य मंगलवार को अक्षयवट वृक्ष के नीचे सुफल (आशीर्वाद) के साथ ही सम्पन्न हो गया। पिंडदानी अपने-अपने जिले के पुरोहित से सुफल लेने के लिए सुबह से ही अक्षयवट पहुंचे। जहां पहले से अलग-अलग जिले के पंडाजी एवं परिवार के अन्य सदस्य पहले विराजमान थे। पंडाजी स्वयं शय्या पर विराजमान थे। ठीक उनके नीचे

By Edited By: Published: Wed, 24 Sep 2014 12:03 PM (IST)Updated: Wed, 24 Sep 2014 12:04 PM (IST)
पिंडदान का कर्मकांड सम्पन्न

गया नगर। 15 दिनों तक चलने वाली पिंडदान का कार्य मंगलवार को अक्षयवट वृक्ष के नीचे सुफल (आशीर्वाद) के साथ ही सम्पन्न हो गया। पिंडदानी अपने-अपने जिले के पुरोहित से सुफल लेने के लिए सुबह से ही अक्षयवट पहुंचे। जहां पहले से अलग-अलग जिले के पंडाजी एवं परिवार के अन्य सदस्य पहले विराजमान थे।

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पंडाजी स्वयं शय्या पर विराजमान थे। ठीक उनके नीचे और आसपास यजमान को स्थान दी गई थी। सुफल (आशीर्वाद) देने से पहले पंडाजी अपने यजमान से यह बार-बार पूछ रहे थे कि गयाधाम में पिंडदान करने में कोई परेशानी तो नहीं हुई। कर्मकांड में कोई व्यवधान नहीं आया। यह बात सुनकर यजमान ने कहा कि पुरोहित जी यह तो पितरों का गयाधाम है। अगर थोड़ा बहुत कष्ट हुआ है उसे पितरों का आशीर्वाद समझकर भूल गए है। ऐसे कुल मिलाकर यहां कर्मकांड पूरे विधि विधान के साथ हुआ है।

बस आप (पंड़ाजी) आशीर्वाद दे दीजिए तो मेरा पिंडदान करने का सुफल मिल जाएगा। कई यजमान पंडाजी से यह पूछ रहे थे कि सुफल में क्या करना होगा। यह पहले से मालूम है कि कुछ दान करना पड़ता है। लेकिन यह नहीं मालूम है कि क्या और कितना दान करना पड़ता है? इसके बारे में थोड़ी जानकारी दें।

कई पंडाजी ने कहा कि यह तो आपके श्रद्धा के ऊपर निर्भर करता है कि पूर्वज के लिए गयाधाम में पिंडदान करने आए हैं, तो क्या दान करना चाहते हैं। दान स्वेच्छा का चीज है। पंडाजी ने कहा कि फिर भी दान में कुछ लोग सोना, चांदी, रुपया-पैसा, कपड़ा, जमीन आदि दान कर सकते हैं। दान पूर्ण रूपेण स्वेच्छा और श्रद्धा का चीज है। यह बात सुनकर पिंडदानियों ने अपनी शक्ति के अनुसार पूरी श्रद्धा के साथ दान किया। उसके बाद पंडा जी ने उन्हें गयाधाम से पितराें की मुक्ति देने और जीवन में सदा कल्याण होगा। ऐसा आशीर्वाद देकर यहां से जाने की अनुमति दी। अक्षयवट में पूरे दिन और संध्या बेला में सुफल देने का कार्य चलता रहा। पंडा जी की चरण पर सिर्फ गयाधाम में ही तुलसी रखने की प्रथा है। पंडाजी ने यजमान की पीठ थपथपाई और जाने की अनुमति दे दी।

पढ़ें: पिंडदानियों ने पूर्वजों को किया वैतरणी पार


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