Pauranik Kathayen: कभी न सोचें आत्महत्या की बात, पढ़ें जीवन के महत्व पर मनुष्य और गीदड़ की कथा
Pauranik Kathayen आत्महत्या करना सबसे बड़ा पाप है। जो लोग भी ऐसा सोचते हैं उनको यह पौराणिक कथा पढ़नी चाहिए।
Pauranik Kathayen: प्रचीन समय में एक ऋषि का बेटा था काश्यप। वह बेहद संयमी और बड़ा तपस्वी था। एक बार उसे एक घमंडी वैश्य ने रथ से धक्का मारकर जमीन पर गिरा दिया। इस कारण वह बेहद दुखी हुआ। वह गुस्से में आ गया, उसने बोला कि इस दुनिया में निर्धन का जीवन बेकार ही है, इस वजह से अब वह आत्मघात कर लेगा।
उसकी बातें देवराज इंद्र सुन रहे थे, उन्होंने एक गीदड़ का रूप धारण किया और उसके पास आए। उन्होंने काश्यप से कहा कि मुनिवर! हर जीव मनुष्य कर शरीर पाने के लिए उत्सुक रहते हैं। उसमें भी ब्राह्मण तो उत्तम होता है। आप मनुष्य हैं, ब्राह्मण हैं और ज्ञानी भी हैं। ऐसा दुर्लभ शरीर पाकर आत्मघात कर लेना या नष्ट कर देना कहां की बुद्धिमानी है?
गीदड़ फिर कहा कि ईश्वर ने जिनको हाथ दिए हैं, मानो उनकी तो सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो गईं। इस समय जिस प्रकार आपको धन की चाह है, ठीक वैसे ही उसे मात्र हाथ पाने की लालसा है। उसके लिए इस संसार में हाथ पाने से बढ़कर इस समय कुछ भी श्रेष्ठ नहीं है। गीदड़ ने काश्यप से कहा- देखो मेरे शरीर में कांटे चुभे हैं, लेकिन हाथन होने से मैं उन्हें निकाल नहीं सकता। लेकिन जिनको भगवान ने हाथ दिए हैं, वे तो धन्य हैं। वे सभी मौसम में अपनी रक्षा कर सकते हैं। जो कष्ट बिना हाथ के हम जैसे प्राणी सहते हैं, वैसा कष्ट आप नहीं सहते। यह आपका सौभाग्य है। ईश्वर की आप पर कृपा है कि आप कीड़ा, चूहा, मेढक या किसी अन्य योनि में नहीं पैदा हुए।
उसने कहा कि काश्यप, आत्महत्या करने जैसा कोई बड़ा पाप नहीं है। यह सोचकर वह ऐसा नहीं करता है। उसके शरीर में कांटे चुभे हैं, कीड़े लगे हैं, फिर भी वह अपने शरीर को नहीं छोड़ना चाहता है। उसे डर है कि कहीं इससे भी नीचे किसी योनि में उसका जन्म न हो जाए।
इसके बाद गीदड़ ने काश्यप से कहा कि आप अपने कर्म कीजिए। सत्य बोलिए, संयम रखिए, दान-पुण्य कीजिए, किसी से अपनी स्पर्धा या तुलना मत कीजिए। फिलहाल वह जिस योनि में है, वह उससे कुकर्मों का ही फल है। वह नास्तिक था, किसी पर विश्वास नहीं करता था, स्वयं को ही विद्वान मानता था। अब वह वैसा सबकुछ करना चाहता है, जिससे कि उसे मनुष्य की योनि मिल जाए।
गीदड़ की इतनी बातें सुनकर काश्यप को अपनी गलती का एहसास हो गया। उसे मानव जीवन का महत्व पता चल गया। उसे यह भी पता चल गया कि वह गीदड़ कोई और नहीं, बल्कि इंद्र थे। उसने इंद्र की आराधना की और फिर घर लौट आया।