Pauranik Katha: तो इस तरह शक्तिपीठ हुए निर्मित, पढ़ें यह शिव-सती की यह पौराणिक कथा
Pauranik Katha माता रानी के शक्तिपीठ के बारे में हम सभी ने सुना है। लेकिन हम में से कितने लोग ऐसे हैं जो यह जानते हैं कि आखिर शक्तिपीठ बने कैसे।
Pauranik Katha: माता रानी के शक्तिपीठ के बारे में हम सभी ने सुना है। लेकिन हम में से कितने लोग ऐसे हैं जो यह जानते हैं कि आखिर शक्तिपीठ बने कैसे। भगवान शिव की पत्नी मां सती पार्वती को ही शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री आदि नामों से जाना जाता है। माता रानी के कई अनेक नाम हैं। इनमें दुर्गा, जगदम्बा, अम्बे, शेरांवाली आदि शामिल है। आज जागरण अध्यात्म आपके लिए एक पौराणिक कथा लाया है जिसमें बताया गया है कि आखिर शक्तिपीठों का निर्माण कैसे हुआ। आइए पढ़ते हैं मां के शक्तिपीठ निर्माण की कथा।
आदि सतयुग के राजा दक्ष की पुत्री पार्वती जी को ही शक्ति कहा गया है। इनका यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि वह पर्वतराज अर्थात् पर्वतों के राजा की पुत्र थीं। एक राजकुमारी होने के चलते उन्हें देवों के देव महादेव से प्रेम हो गया। शिव के कारण ही माता पार्वती का नाम शक्ति पड़ा। पार्वती जी के पिता शिवजी से उनके विवाह के लिए तैयार नहीं थे लेकिन फिर पार्वती जी ने शिव जी से विवाह कर लिया। एक बार राजा दक्ष के यहां यज्ञ हो रहा था जिसका न्यौता पार्वती जी और शिवजी को नहीं दिया गया। शिवजी ने माता पार्वती को यज्ञ में जाने से मना किया। लेकिन फिर भी पार्वती अपने पिता के यज्ञ में पहुंच गईं। लेकिन राजा दक्ष ने सती के सामने के ही उनके पति यानि शिवजी को लेकर कई अपमानजनक बातें कही। यह सब उनसे सहन नहीं हुआ। वह यज्ञ कुंड में कूद गईं और अपने प्राण त्याग दिए।
यह सूचना जैसे ही शिवजी को मिली उन्होंने अपने सेनापति वीरभद्र को भेजकर राजा दक्ष का सिर कटवा दिया। सती की मृत्यु से दुखी शिवजी ने उनके शरीर को अपने कंधे पर उठाया और क्रोधित हो धरती पर घूमते रहे। इसी दौरान सती के शरीर के अंग या आभूषण जहां-जहां गिरे वहीं, शक्तिपीठ निर्मित हो गए। शक्तिपीठ के नाम की बात करें तो जहां पर जो अंग या आभूषण गिरा उसका नाम वैसा ही पड़ा।