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गयासुर के विशाल सिर के भाग मुंड पृष्ठा वेदी अवस्थित

आश्रि्वन कृष्ण एकादशी सोमवार त्रिपाक्षिक गया श्रद्ध का 12वां दिवस है। उक्त तिथि को मुंडपृष्ठा वेदी से श्राद्ध प्रारंभ होता है। यह वेदी विष्णुपद मंदिर से दक्षिण करसीली पर्वत पर है। यह पर्वत गयासुर के विशाल सिर की क्षेत्र सीमा के अंतर्गत है। गयाधाम में उसका विशाल सिर एक कोश में फैला हुआ है। उसके विशाल सिर की दक्षिणी सीमा पर संकटा देवी एव

By Edited By: Published: Mon, 30 Sep 2013 03:10 PM (IST)Updated: Mon, 30 Sep 2013 03:16 PM (IST)
गयासुर के विशाल सिर के भाग मुंड पृष्ठा वेदी अवस्थित

आश्रि्वन कृष्ण एकादशी सोमवार त्रिपाक्षिक गया श्रद्ध का 12वां दिवस है। उक्त तिथि को मुंडपृष्ठा वेदी से श्राद्ध प्रारंभ होता है। यह वेदी विष्णुपद मंदिर से दक्षिण करसीली पर्वत पर है। यह पर्वत गयासुर के विशाल सिर की क्षेत्र सीमा के अंतर्गत है। गयाधाम में उसका विशाल सिर एक कोश में फैला हुआ है। उसके विशाल सिर की दक्षिणी सीमा पर संकटा देवी एवं ब्रहम सरोवर है तथा उतरी सीमा पर से उत्तर मानस पिता महेश्वर तीर्थ है। पूर्वी सीमा पर नागकूट पर्वत (सीता कुंड) तथा पश्चिमी सीमा पर गृध्रेश्वर महादेव (गोदावरी) एवं अक्षयवट तीर्थ है। उक्त सभी वेदियां 360 वेदियों की गणना में हैं। पांच कोश के गया क्षेत्र का केन्द्र स्थल करसीली पर्वत है। यह गयाधाम का अति प्राचीन स्थल है। इसके उत्तर दिशा में ढाई कोश, दक्षिण दिशा में ढाई कोश, पूर्व दिशा में ढाई कोश तथा पश्चिम दिशा में ढाई कोश - पांच कोश में व्याप्त गया क्षेत्र है। पवित्र करसीली पर स्थित मुंडपृष्ठा देवी की बारह भुजाएं हैं। यह दर्शनीय वेदी है। यहां से दक्षिण पश्चिम दिशा में आदि गया वेदी है। यहां एक विशाल शिला है। श्रद्ध का पिंड यहां समर्पित किया जाता है। आदि गया वेदी से दक्षिण पश्चिम दिशा में धौतपद वेदी है। यहां उजला शिला पर श्रद्ध का पिंड समर्पित किया जाता है। पितरों की मुक्ति हेतु यहां चांदी दान किया जाता है। यहां से दक्षिण दरवाजा के पास सुरवमना महादेव (सुषुम्ना महादेव) दर्शनीय वेदी है। सुषुम्ना महादेव इनका पौराणिक नाम है।

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