Parama Ekadashi Katha: आज पूजा के समय जरूर पढ़ें परमा एकादशी व्रत की कथा
Parama Ekadashi Katha काम्पिल्य नगर में एक ब्राह्मण रहता था जिसका नाम सुमेधा था। उसके साथ उसकी पत्नी रहती थी। ब्राह्मण और उसकी पत्नी मिलकर अतिथियों का बहुत स्वागत-सत्कार किया करते थे। उनके पास धन ज्यादा नहीं था।
Parama Ekadashi Katha: काम्पिल्य नगर में एक ब्राह्मण रहता था जिसका नाम सुमेधा था। उसके साथ उसकी पत्नी रहती थी। ब्राह्मण और उसकी पत्नी मिलकर अतिथियों का बहुत स्वागत-सत्कार किया करते थे। उनके पास धन ज्यादा नहीं था। लेकिन फिर भी दोनों अतिथियों की खूब सेवा करते थे। दोनों अतिथि सत्कार में विश्वास रखते थे। एक दिन ब्राह्मण ने अपनी पत्नी से कहा, उनके पास धन की कमी है ऐसे में वो अतिथि सत्कार नहीं कर पाएंगे। तो मैं शहर जाकर कुछ पैसे कमाकर लाता हूं जिससे हमारी धन की कमी दूर हो जाएगी। यह सुन पत्नी ने कहा कि जिसकी किस्मत में जो लिखा होता है उसे उतने ही धन की प्राप्ति होती है। अगर ईश्वर को कुछ देना ही होगा तो वो घर बैठे भी दे देगा।
ब्राह्मण ने अपनी पत्नी की बात मान ली। उसने तय किया कि वो घर पर ही रहेगा। फिर कुछ समय बाद शहर से उसके घर ऋषि कौण्डिल्य आए। ब्राह्मण और उसकी प्तनी उन्हें देख बेहद प्रसन्न हुए। दोनों ऋषि कौण्डिल्य को अपने घर ले आए और उनकी सेवा करने लगे। सेवा करने के बाद दोनों ने उनसे पूछा कि हमें हमारी गरीबी को दूर करने का कोई उपाय बताएं।
ऋषि कौण्डिल्य ने ब्राह्मण के सवाल का जवाब देते हुए कहा कि अगर वो अधिक मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली परमा एकादशी का व्रत करते हैं तो उनकी दरिद्रता दूर जाएगी और भाग्योदय भी होगा। ऋषि कौण्डिल्य ने जैसा कहा था ठीक उसी तरह ब्राह्मण दंपत्ति ने विधि-विधान के साथ परमा एकादशी का व्रत किया। इसके प्रभाव से उनकी दरिद्रता दूर हो गई। साथ ही उन दोनों को अपार संपत्ति की प्राप्ति हुई। इसके बाद से ब्राह्मण दंपत्ति ने सत्कर्म करते हुए अपना पूरा जीवन व्यतीत किया और आखिरी में भगवान विष्णु के बैकुंठ लोक गए। जिस तरह परमा एकादशी का व्रत करने से ब्राह्मण दंपत्ती की दरिद्रता दूर हुई ठीक उसी तरह हम सब पर भी विष्णु भगवान की कृपा बनी रहे।