नारद जयंती 2018: जाने कौन हैं देवर्षि, इन पुराणों में आता है उनका उल्लेख
देवर्षि माने वाले नारद मुनि की जयंती मनायी जेठ महीने के कृष्ण पक्ष की द्वितिया को मनाई जाती है, जाने उनसे जुड़ी कुछ विशेष बातें।
कौन हैं नारद मुनि
हिन्दू पंचाग के अनुसार ज्येष्ठ मास में कृष्ण पक्ष की द्वितिया तिथि को नारद जयंती मनाई जाती है। इस बार यह 1 मई 2018 को पड़ रही है। आमतौर पर नारद जयंती बुद्ध पूर्णिमा के एक दिन बाद मनाई जाती है। नारद मुनि, हिन्दु शास्त्रों के अनुसार, ब्रह्मा के सात मानस पुत्रों में से एक है। उन्होने कठिन तपस्या से ब्रह्मर्षि पद प्राप्त किया । वे भगवान विष्णु के अनन्य भक्तों में से एक माने जाते है। शास्त्रों में इन्हें भगवान का मन भी कहा गया है। मात्र देवताओं ने ही नहीं, वरन् दानवों ने भी उन्हें सदैव आदर किया है। समय-समय पर सभी ने उनसे परामर्श लिया है। श्रीमद्भगवद्गीता के दसवें अध्याय के 26वें श्लोक में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने इनकी महत्ता को स्वीकार करते हुए कहा है - देवर्षीणाम् च नारद:। देवर्षियों में मैं नारद हूं। श्री मदभागवत महापुराणका कथन है, सृष्टि में भगवान ने देवर्षि नारद के रूप में तीसरा अवतार ग्रहण किया और सात्वततंत्र, जिसे नारद पांचरात्र भी कहते हैं, का उपदेश दिया जिसमें सत्कर्मो के द्वारा भव-बंधन से मुक्ति का मार्ग दिखाया गया है।
इन पुराणों में आता है नारद जी का उल्लेख
नारद मुनि को देवर्षि कहा गया है। विभिन्न धर्मग्रन्थों में इनका उल्लेख आता है। जिसमें से कुछ ग्रंथ निम्नलिखित हैं।
1- अथर्ववेद के अनुसार नारद नाम के एक ऋषि हुए हैं।
2- ऐतरेय ब्राह्मण के कथन के अनुसार हरिशचंद्र के पुरोहित सोमक, साहदेव्य के शिक्षक तथा आग्वष्टय एवं युधाश्रौष्ठि को अभिशप्त करने वाले भी नारद थे।
3- मैत्रायणी संहिता में नारद नाम के एक आचार्य हुए हैं।
4- सामविधान ब्राह्मण में बृहस्पति के शिष्य के रूप में नारद का वर्णन मिलता है।
5- छान्दोग्यपनिषद् में नारद का नाम सनत्कुमारों के साथ लिखा गया है।
6- महाभारत में मोक्ष धर्म के नारायणी आख्यान में नारद की उत्तरदेशीय यात्रा का विवरण मिलता है। इसके अनुसार उन्होंने नर-नारायण ऋषियों की तपश्चर्या देखकर उनसे प्रश्न किया और बाद में उन्होंने नारद को पांचरात्र धर्म का श्रवण कराया।
7- नारद पंचरात्र के नाम से एक प्रसिद्ध वैष्णव ग्रन्थ भी है जिसमें दस महाविद्याओं की कथा विस्तार से कही गई है। इस कथा के अनुसार हरी का भजन ही मुक्ति का परम कारण माना गया है।
8- नारद पुराण के नाम से एक ग्रन्थ मिलता है। इस ग्रन्थ के पूर्वखंड में 125 अघ्याय और उत्तरखण्ड में 182 अघ्याय हैं।