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सिद्धि के लिए नवरात्रों का किया जाता है इंतजार, क्या है शक्ति की सिद्धि

नवरात्रों में माता के नौ रुपों की आराधना की जाती है। माता के इन नौ रुपों को हम देवी के विभिन्न रूपों की उपासना उनके तीर्थो के माध्यम से समझ सकते हैं। साल में दो बार नवरात्र रखने का विधान है।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Published: Wed, 21 Oct 2020 10:30 AM (IST)Updated: Wed, 21 Oct 2020 10:30 AM (IST)
सिद्धि के लिए नवरात्रों का किया जाता है इंतजार, क्या है शक्ति की सिद्धि
सिद्धि के लिए नवरात्रों का किया जाता है इंतजार, क्या है शक्ति की सिद्धि

नवरात्रों में माता के नौ रुपों की आराधना की जाती है। माता के इन नौ रुपों को हम देवी के विभिन्न रूपों की उपासना, उनके तीर्थो के माध्यम से समझ सकते हैं। साल में दो बार नवरात्र रखने का विधान है। चैत्र मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नौ दिन अर्थात नवमी तक, ओर इसी प्रकार ठीक छह महीने बाद आश्चिन मास, शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक माता की साधना और सिद्धि प्रारम्भ होती है। दोनों नवरात्रों में शारदीय नवरात्रों को ज्यादा महत्व दिया जाता है।

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इन बातों पर निर्भर करती है शक्ति की सिद्धि:

कुण्डली विश्ल़ेषक अनीष व्यास ने बताया कि शक्ति की सिद्धि तीन बातों पर निर्भर करती है, संयम, सत्य और सद्भाव। शक्ति उसी के साथ है जिसके जीवन में ये तीन भाव भीतर तक उतरे हुए हैं। पहला संयम, शक्ति उसी के पास संचित रहती है जो संयम से रहता हो, असंयमित लोगों की शक्ति उन्हें समय पूर्व छोड़ देती है। दूसरा सत्य, शक्ति सत्य के साथ रहती है। रामायण का युद्ध हो या महाभारत का कुरुक्षेत्र, शक्ति ने उसी का साथ दिया है जो सत्य के साथ था। असत्य के साथ देने वालों को शक्ति तत्काल छोड़ देती है। तीसरा सद्भाव, जब शक्ति आए तो विनम्रता और समानता का भाव जरूरी होता है, शक्ति का यश उसी को मिलता है जो विनम्र हो, लोगों के प्रति समान भाव रखे। भेदभाव करने वाले को कभी शक्ति से यश नहीं मिलता।

आपके भीतर ही मौजूद है शक्ति:

योग कहता है, शक्ति हमारे भीतर मौजूद है, जरूरत है जगाने की। इन नौ दिनों में शक्ति को जगाया जा सकता है। अगर हम इन नौ दिनों में अपने भीतर स्थित परमात्मा के अंश को रत्तीभर भी पहचान पाएं तो समझिए, नवरात्र सफल हैं। सारे नियम-कायदे, व्रत-उपवास, मंत्र-जाप, बस इसी के लिए हैं कि हम उसके दर्शन भीतर कर सकें, जिसे बाहर खोज रहे हैं। गीता में कृष्ण ने स्पष्ट कहा है, सबमें मेरा ही अंश है। फिर खोज बाहर क्यों, कोशिश करें कि इस नवरात्र मंदिरों के साथ थोड़ी यात्रा भीतर की भी हो। जब अपने अंतर में परमात्मा को देख सकेंगे, तो फिर बाहर चारों ओर उसे महसूस करेंगे। अगर हम जितना खुद के भीतर उतरेंगे, उतना परमात्मा को निकट पाएंगे। ये नवरात्र आपकी भीतरी यात्रा की शुरुआत हो सकती है।

डिसक्लेमर

'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी। '

 


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