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नारी का करें सम्मान, तभी साकार हो सकता है नवरात्रों का तप

बहुत सुखद विरोधाभास है मां जितनी कोमल होती हैं उतनी ही कठोर भी होती हैं। इस रिश्ते में प्रेम-सम्मान और अपनत्व की आवश्यकता सबसे अधिक है। भक्ति निःस्वार्थ है तो मां भी प्रसन्न हैं। स्वार्थ से की गई साधना में अत्यधिक सावधानी रखनी होती है...

By Shilpa SrivastavaEdited By: Published: Wed, 21 Oct 2020 11:30 AM (IST)Updated: Wed, 21 Oct 2020 11:30 AM (IST)
नारी का करें सम्मान, तभी साकार हो सकता है नवरात्रों का तप
नारी का करें सम्मान, तभी साकार हो सकता है नवरात्रों का तप

बहुत सुखद विरोधाभास है, मां जितनी कोमल होती हैं, उतनी ही कठोर भी होती हैं। इस रिश्ते में प्रेम-सम्मान और अपनत्व की आवश्यकता सबसे अधिक है। भक्ति निःस्वार्थ है तो मां भी प्रसन्न हैं। स्वार्थ से की गई साधना में अत्यधिक सावधानी रखनी होती है, क्योंकि ये एक अनुबंध की तरह होती है, मैं ये करूंगा तो आप मुझे ये सिद्धि देंगी। मामला जब अनुबंध का है तो सावधानी ज्यादा रखनी है। क्योंकि अनुबंध की शर्तें पूरी नहीं हुईं तो दंड भी भोगना पड़ सकता है। परमात्मा को कभी शर्तों में ना बांधें, वो व्यापारी नहीं है। उसे सिर्फ प्रेम से ही जीता जा सकता है। अगर मन सिर्फ मां के प्रेम में डूबा है, कोई सिद्धि की आकांक्षा नहीं है तो फिर कोई सावधानी भी नहीं है।

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दरअसल, मन में प्रेम, सेवा और सत्य का भाव होना ही सबसे बड़ी भक्ति है। लोग कहते हैं नवरात्र के व्रतों में कोई गलती हो जाए तो परिणाम भी भयंकर होते हैं। सोचने वाली बात है, क्या मां इतनी कठोर होती हैं? कभी नहीं। मां से ज्यादा कोमल तो कोई शब्द इस सृष्टि में बना ही नहीं है। फिर क्यों मां की साधना के नियम इतने कठोर हैं? कठोर नियम उनके लिए हैं जो हक से ज्यादा मांगना चाहते हैं। जब बच्चे को कोई चीज बिना मां की मर्जी के लेनी होती है तो वो जिद करता है। पूरे ब्रह्मांड में मां ही ऐसी शक्ति है जो बिना कहे जान जाती है कि बच्चे को क्या चाहिए। बशर्ते बच्चे के मन में वो निश्चल भाव हो, प्रेम हो और सत्य हो। ये तीन बातें आपके भीतर हैं तो मां से कुछ मांगने की जरूरत नहीं है, वो स्वयं आपको आवश्यकता ही हर चीज देंगी। मां से जो मांगना है, प्रेम से मांगिए, जिद किसी मां को अच्छी नहीं लगती।

बिना तप शक्ति मिलना संभव नहीं:

ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि वास्तव में बिना तप शक्ति मिलना संभव नहीं है। अभ्यास के तप के बिना ज्ञान की शक्ति नहीं मिलती। व्रत पालन से हठयोग तक, कई रास्ते हैं जो शक्ति की सिद्धि तक ले जाते हैं। फिर भी हम कहीं चूक रहे हैं, कुछ ऐसा है जो भूल रहे हैं, कहीं कोई त्रुटि जरूर हो रही है, जो नवरात्रों की इतनी साधना के बाद भी शक्ति के दर्शन से हम कुछ कदम दूर रह जाते हैं। शायद संकल्प का अभाव। लोग नौ दिन तक सारे वो काम छोड़ देते हैं जो भक्ति में बुरे माने जाते हैं। सही मायनों में, नवरात्र के नौ दिन सिद्धि प्राप्ति से ज्यादा शक्ति को पाने की शुरुआत करने के हैं। ये नौ दिन प्रारंभिक प्रक्रिया है, संपूर्ण सिद्धि नौ दिन में नहीं मिल सकती। संकल्प लेना होगा, जो दुर्व्यसन इस नवरात्र में छोड़ेंगे, वो फिर कभी शुरू नहीं होंगे। ये नौ दिन तप को शुरू करने के हैं। मंत्र सिद्धि के हैं। इससे शुरुआत करनी है, ये नौ दिन तो भक्ति में डूबने के हैं। यहां अपने आप पर कई प्रतिबंध लगाकर देवी को प्रसन्न नहीं किया जा सकता, अगर फिर से उन्हें शुरू ही करना है तो नौ दिन कुछ भी छोड़ना ढकोसला मात्र है।

नारी ही शक्ति है, उसका सम्मान जरुरी: 

नवरात्र देवि की आराधना के लिए हैं। नारी स्वयं देवी है क्योंकि वो जन्म देती है। मंदिरों में दर्शन से गरबों में आराधना तक, अगर नारी के लिए मन में अच्छे भाव नहीं हैं तो नवरात्र साधना कठिन नियमों के पालन के बावजूद भी बेकार है। शास्त्र कहते हैं.....

विद्याः समस्तास्तव देवि भेदाः, स्त्रियः समस्ताः सकला जगत्सु।

त्वयैकया पूरितमम्बयैतत्, का ते स्तुतिः स्तव्यपरापरोत्किः।।

अर्थ – जगत् की सम्पूर्ण विद्या (परा, अपरा व चतुर्दश) भगवती शक्ति के ही भेद हैं और सम्पूर्ण स्त्रियां भी उसी का अंग हैं। शिव अगर प्रथम पुरुष हैं तो देवि प्रकृति हैं। पुरुष और प्रकृति ने ही सारी सृष्टि की रचना की है। इसलिए, शक्ति को प्रसन्न करना चाहते हैं, तो महिलाओं के लिए मन से हीन और खेदजनक भावनाएं निकाल दें। तभी देवी की कृपा मिल सकती है। अन्यथा देवी के लिए किया कोई भी अन्य जतन उन्हें प्रसन्न नहीं कर सकता, अगर नारी जाति का सम्मान नहीं किया गया।

डिसक्लेमर

'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी। ' 


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