Muharram 2020 History: हजरत इमाम हुसैन की शहादत की मिसाल है मोहर्रम, गवाह है कर्बला की जंग
Muharram 2020 History आज इस अवसर पर हम आपको मोहर्रम के इतिहास और महत्व के बारे में बता रहे हैं।
Muharram 2020 History: इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक हिजरी संवत का पहला माह मोहर्रम है। मोहर्रम पैगम्बर मोहम्मद के नाती हजरत इमाम हुसैन समेत 72 शहीदों की शहादत का मिसाल है। इसका इतिहास कर्बला की जंग से जुड़ा हुआ है। उन 72 शहीदों की शहादत की याद में मोहर्रम मनाया जाता है। यह गम का महीना है। इसमें मातम मनाया जाता है। मोहर्रम के पहले 10 दिन हजरत इमाम हुसैन को समर्पित है, जिसमें उनकी शहादत को याद करते हुए शोक मनाया जाता है। आज इस अवसर पर हम आपको मोहर्रम के इतिहास और महत्व के बारे में बता रहे हैं।
मोहर्रम का इतिहास
तत्कालीन इराक के कर्बला में सन् 680 में इस्लाम की हिफाजत के लिए हजरत इमाम हुसैन तथा बादशाह यजीद के बीच ऐतिहासिक जंग हुआ था। बादशाह यजीद खुद को इस्लाम का खलीफा घोषित कर दिया था और पूरे अरब में अपना वर्चस्व कायम करना चाहता था, लेकिन हजरत इमाम हुसैन उसके सामने झुकने वाले न थे। समय के साथ साथ बादशाह यजीद का लोगों पर अत्याचार बढ़ने लगा। इस परिस्थिति में इमाम हुसैन अपने परिवार और साथियों के साथ मदीना से कुफा जाने के लिए निकल पड़े।
इसी बीच यजीद को इसकी सूचना मिल गई और उसकी सेना ने मुहर्रम के दूसरे दिन कर्बला के रेगिस्तान में इमाम हुसैन के परिवार और साथियों को रोक लिया। मोहर्रम के छठे दिन उन लोगों को फरात नदी से पानी पीने पर पाबंदी लगा दी गई। इसके बाद भी इमाम हुसैन नहीं झुके और फिर जंग शुरु हो गई।
इमाम हुसैन सहित 72 साथियों ने यजीद की बड़ी सेना का हिम्मत के साथ मुकाबला किया। उनकी वीरता की गाथा उनके दुश्मन भी सुनाते। उन्होंने इस मुश्किल वक्त में भी पैगम्बर मोहम्मद के बताए विचारों को नहीं छोड़ा। इस्लाम की रक्षा में भूख, प्यास, दुख, दर्द सबकुछ भूल गए। कर्बला की जंग में उनके सभी अपनों ने शहादत की मिसाल कायम की। मोहर्रम के 10वें दिन तक जंग चली। यजीद की सेना इमाम हुसैन को मार नहीं सकी, उनको धोखे से मारा गया। जब वे नमाज अदा कर रहे थे तब उन पर वार किया गया। उनकी शहादत अमर हो गई।
मोहर्रम का महत्व
कर्बला की जंग के बाद से हर वर्ष मोहर्रम माह के पहले 10 दिन मातम मनाया जाता है। मुस्लिम समुदाय के लोग हजरत इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत की याद में गमजदा होते हैं। कई लोग 10 दिनों तक रोजा रखते हैं, तो कुछ मोहर्रम के 9वें और 10वें दिन रोजा रखते हैं।