Motivational Story: क्या आप भी करते हैं दूसरे के काम की निंदा? तो जरूर पढ़ें यह प्रेरक कथा
Motivational Story आपने कुछ लोगों को दूसरे के कामों में मीन मेख निकालते देखा होगा। उनको दूसरों के काम करने के तरीके से शिकायत रहती है या फिर वे उस शख्स की पूरी मेहनत को ही नकार देते हैं।
Motivational Story: आपने कुछ लोगों को दूसरे के कामों में मीन मेख निकालते देखा होगा। उनको दूसरों के काम करने के तरीके से शिकायत रहती है या फिर वे उस शख्स की पूरी मेहनत को ही नकार देते हैं। क्या आप भी दूसरों के काम की निंदा करते हैं, तो पढ़िए यह प्रेरक कथा।
एक बार संध्या समय योग गुरु स्वामी सत्यानंद सरस्वती मुंगेर स्थित अपने योगाश्रम में टहल रहे थे। वहां रहकर योग सीखने के उद्देश्य से एक दिन एक संपन्न किसान आश्रम में आया था। पहले दिन ही शाम को उसकी भेंट स्वामी जी से हो गई। स्वामी जी ने उसका कुशल क्षेम पूछा, तो जवाब में किसान ने खीझते हुए बताया- 'स्वामी जी, आपके आश्रम में खाने में जो मुझे रोटियां मिली थीं, वे ठंडी, सख्त और अधपकी थीं।'
किसान की इस बात पर स्वामी जी मुस्कुराये और पूछा- 'आपको समय पर खाना मिल गया था?' किसान ने तुरंत हां में सिर हिला दिया। स्वामी जी बोले-'यहां लोग मिल-जुल कर खाना बनाते हैं, वे पाककला में दक्ष नहीं हैं। कल से रोटी बनाने की जिम्मेदारी आपको सौंप दी जाएगी। आशा है, आपके हाथों की गर्म, नर्म और पूरी पकी हुई रोटियां सभी को खाने को मिलेंगी।'
इतना सुनते ही किसान अधीर हो गया। उसने कहा-'मैंने हमेशा खेती-बाड़ी ही की है, रोटियां पकाना मेरा काम नहीं है।' स्वामी जी ने उत्तर दिया- 'यहां सभी लोग मिलकर सभी काम करते हैं।' दूसरे दिन उस संपन्न किसान ने सचमुच रोटियां अच्छी तरह पकाई। सभी ने तारीफ करते हुए नर्म-मुलायम रोटियां खाईं।
दूसरे दिन उसने थोड़ी बेडौल रोटियां बनाईं। आगे के दिनों में तो वह अधपकी और सख्त रोटियां ही बनाने लगा। एक दिन रोटियां बनाने वह रसोई में काफी देर से पहुंचा। यह बात स्वामी जी तक पहुंची, तो उन्होंने उनसे भोजन में देरी होने की वजह जाननी चाही। किसान ने झेंपते हुए कहा- 'मैं रोज-रोज रोटियां बनाते-बनाते ऊब गया हूं, इसलिए देर से पहुंचा।'
स्वामी जी ने किसान के साथ-साथ सभी लोगों को संबोधित करते हुए कहा- अगर हमारा लक्ष्य परम योग को प्राप्त करना है, तो हमें रोजमर्रा की छोटी-छोटी बातों पर भी ध्यान देना होगा। हमें मात्र अपने कर्तव्य का निर्वहन ही नहीं करना है, बल्कि निरंतरता भी बनाए रखनी है। हमें निरंतर कर्म करना होगा। किसी भी कार्य को छोटा नहीं समझना है।
रोटियों में मीनमेख निकालने के बजाय हम समय पर भोजन उपलब्ध कराने वाले का आभार करें। जिस कार्य की हम निंदा कर रहे हैं, उस कार्य को स्वयं करके जरूर देखें, तभी हमें दूसरों के श्रम और मेहनत का सम्मान करना सीख पाएंगे।
कथा का सार
कर्म की निरंतरता अत्यंत आवश्यक है। इसे समझे बिना योग को नहीं समझा जा सकता।