महाशिवरात्रि 2018: जानिए क्यों रहता है भगवान शंकर के गले में नाग, हाथ में डमरू
अनोखे रूप वाले शिव जी चंद्रकला, नाग, डमरू और त्रिशूल से सुशोभित रहते हैं। आइये जानें उनकी इन प्रिय वस्तुओं के बारे में।
By Molly SethEdited By: Published: Tue, 13 Feb 2018 11:21 AM (IST)Updated: Tue, 13 Feb 2018 11:47 AM (IST)
त्रिशूल
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव के दो प्रमुख अस्त्र हैं जिसमें से धनुष के आविष्कारक स्वयं शिव जी माने जाते हैं, लेकिन त्रिशूल उनके पास कैसे पहुंचा इसकी कोई जानकारी नहीं मिलती। हालांकि ऐसा कहा जाता है कि सृष्टि के आरंभ में ब्रह्मनाद से जब शिव प्रकट हुए तो साथ में ही रज, तम, सत यह तीनों गुण भी प्रकट हुए। यही तीनों गुण शिव जी के तीन शूल अर्थात त्रिशूल के रूप में सामने आते हैं। क्योंकि शिव सृष्टि का संचालन इन्हीं तीनों के सामंजस्य से करते हैं अत: यही त्रिशूल के रूप में उनके साथ रहते हैं। त्रिशूल दैहिक दैविक भौतिक इन त्रयतापों के शमन का भी प्रतीक है।
डमरू
इसी प्रकार सृष्टि के आरंभ में देवी सरस्वती ने प्रकट हो कर अपनी वीणा के स्वर से सष्टि में ध्वनि को जन्म दिया, लेकिन यह सुर और संगीत विहीन थी। तबशिव जी ने नृत्य करते हुए चौदह बार डमरू बजाया और उससे व्याकरण और संगीत के छंद और ताल का जन्म हुआ। ऐसा भी माना जाता है कि कहते हैं कि डमरू ब्रह्म का स्वरूप है। डमरू के नाद से महेश्वर सूत्रों अ इ उ ण ऋ ल क आदि का सृजन हुआ जिससे संसार में मनुष्य को परस्पर संवाद के लिए अक्षर मिले इसीलिए अक्षरों को नाद ब्रम्ह भी कहा गया बाद में पाणिनी ने इससे व्याकरण की रचना की।
चन्द्रकला
शिव पुराण की मानें तो चन्द्रमा का विवाह दक्ष प्रजापति की 27 कन्याओं से हुआ था। यह कन्याएं ही 27 नक्षत्र हैं। इनमें चन्द्रमा रोहिणी से विशेष स्नेह करते थे। इसकी शिकायत जब अन्य कन्याओं ने दक्ष से की तो दक्ष ने चन्द्रमा को क्षय होने का शाप दे दिया। इस शाप बचने के लिए चन्द्रमा ने भगवान शिव की तपस्या की। चन्द्रमा की तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी ने चन्द्रमा के प्राण बचाए और उन्हें अपने शीश पर स्थान दिया। जहां चन्द्रमा ने तपस्या की थी वह स्थान सोमनाथ कहलाता है। मान्यता है कि दक्ष के शाप से ही चन्द्रमा घटता बढ़ता रहता है।
भगवान शिव के गले में हमेशा वासुकी नाम का नाग रहता है। इसके बारे में पुराणों में जिक्र है कि यह नागों के राजा हैं और नागलोक पर इनका शासन है। सागर मंथन के समय इनसे ही रस्सी का काम लिया गया था। वासुकी शिव जी के परम भक्त थे। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर शिव जी ने इन्हें नागलोक का राजा बना दिया और साथ ही अपने गले में आभूषण की भांति लिपटे रहने का वरदान दिया। नाग वायु रूप भी है और सर्वत्र संचार की शक्ति रखता है।
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