पुराण में है गयाधाम में पिंडदान करने का विधान
गयातीर्थ में पितृपक्ष में पिंड एवं तर्पण करने का शास्त्रीय विधान है। वायु पुराण के अनुसार गया में कभी भी पिंड करने से पितरों का कल्याण होता है। परन्तु पितृपक्ष का विशेष महत्व है। अपने पितरों के उद्धार के लिए भक्त यहां पर आकर पिंडदान करते हैं। 17 दिनों का विधान है। परन्तु जीव अगर एक रात्रि भी विश्राम करके पिंड आदि का
गया। गयातीर्थ में पितृपक्ष में पिंड एवं तर्पण करने का शास्त्रीय विधान है। वायु पुराण के अनुसार गया में कभी भी पिंड करने से पितरों का कल्याण होता है। परन्तु पितृपक्ष का विशेष महत्व है। अपने पितरों के उद्धार के लिए भक्त यहां पर आकर पिंडदान करते हैं। 17 दिनों का विधान है।
परन्तु जीव अगर एक रात्रि भी विश्राम करके पिंड आदि का कर्म करें तो भी पितरों को शांति मिलती है। उसके साथ में अगर भागवत श्रवण भी करें तो पितृ अधिक प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं। घर में सुख शांति एवं सन्तति की प्राप्ति होती है। कैसा भी पापी क्यों नहीं हो, जिसने जीवन भर दुष्कर्म किए हो। वो अगर भागवत का श्रवण कर लेता है, तो उसका उद्धार हो जाता है। संसार में अनेकों पुराण सुनने को हैं। परन्तु भागवत गर्जना करती है कि मेरे श्रवण मात्र से सभी ग्रंथों के श्रवण का फल प्राप्त हो जाता है। जहां भागवत होती है, वह स्थान तीर्थ बन जाता है। यह तो गया अपने आप में स्वयं तीर्थ है। संसार का चिंतन करने से आत्मबल कमजोर होता है। प्रभु का चिंतन करने से आत्मबल दृढ़ होता है। कई लोग जो विदेशों में रहते हैं। उन्हें अपने पितरों की याद आती है, परन्तु वे गयाधाम आकर पिंडदान करने का समय नहीं है। ऐसे लोगों को अगर पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करना है, तो कोई विशेष भागदौड़ करने की जरूरत नहीं है। ऐसे लोग कोई विकलांग बच्चा जो पैर से कमजोर हैं, उन्हें आर्थिक मदद कर कृत्रिम पैर लगा दिया जाए। उस विकलांग बच्चे जब अपने पैर पर चलने लगेगा तो उससे जो आनंद की अनुभूति होती है। वह देखकर आपके पितृ काफी प्रसन्न होंगे। प्रसन्न होकर आशीर्वाद देंगे।
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