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अंतिम सावन सोमवार तो जैसे भक्तों का मेला ही लग जाता है

महासमुंद जिले के ग्राम भंवरपुर स्थित शिव पार्वती मंदिर की दूर-दूर तक प्रसिद्धि है। लोगों में ऐसी मान्यता है कि यहां सच्चे मन से की गई मनोकामना स्वयंभू भोलेनाथ जरूर पूरी करते हैं,

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 20 Jul 2016 02:26 PM (IST)Updated: Wed, 20 Jul 2016 02:39 PM (IST)
अंतिम सावन सोमवार तो जैसे भक्तों का मेला ही लग जाता है

भंवरपुर। महासमुंद जिले के ग्राम भंवरपुर स्थित शिव पार्वती मंदिर की दूर-दूर तक प्रसिद्धि है। लोगों में ऐसी मान्यता है कि यहां सच्चे मन से की गई मनोकामना स्वयंभू भोलेनाथ जरूर पूरी करते हैं, जिसके कई उदाहरण आज भी इस क्षेत्र में मौजूद हैं। यही एक बड़ा कारण है कि यहां भक्तों की संख्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है। फाल्गुन महीने की महाशिवरात्रि और सावन के पूरे माह यहां भक्तों का तांता लगा रहता है।

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अंतिम सावन सोमवार तो जैसे भक्तों का मेला ही लग जाता है। उस दिन मंदिर में देर शाम तक शिवलिंग का जलाभिषेक होता है। मंदिर में जलाभिषेक करने कुछ श्रद्धालु जैतपुर एवं चंद्रपुर स्थित महानदी से कांवर में जल लाकर तो कुछ ओडिशा स्थित नरसिंहनाथ धाम से कांवर में जल लाकर शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं। एक ही दिन में यहां दस हजार से अधिक कांवरिए विभिन्न स्थानों से जल लाकर जलाभिषेक करते हैं।

ये है मंदिर का इतिहास भंवरपुर के देव तालाब रानीसागर के किनारे स्थित इस पूर्व मुखी शिव मंदिर का इतिहास जितना पुराना है, उतना ही रोचक भी। गांव के बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि वर्षों पहले इस मंदिर की जगह पर एक खेत था। जहां खेत के मालिक किसान ने एक कुआं बनाने के उद्देश्य से जमीन की खोदाई शुरू की। कुछ खोदाई करने के बाद किसान को उस जगह पर एक गोल पत्थर मिला जो खोदाई को आगे बढ़ने नहीं दे रहा था। किसान ने उस पत्थर को निकालने बहुत जतन किया। उसने पहले उस गोल पत्थर की गोलाई में खोदाई की फिर वहां पानी डालकर उसे हिला डुला कर निकालने की कोशिश की, लेकिन उसे वह नहीं निकाल पाया। तब उसने पत्थर को तोड़ने के लिए कुदाल से जोरदार प्रहार किया। लेकिन पत्थर पर इसका कोई असर नहीं हुआ। उस पर कुदाल का निशान अवश्य हो गया, जो आज भी शिवलिंग पर मौजूद है। उसे स्पर्श करके महसूस किया जा सकता है। दिनभर की मेहनत के बाद भी जब किसान सफल नहीं हुआ तो दूसरे दिन किसी भी तरह उस पत्थर को निकालने का संकल्प लेकर वह घर आ गया और आराम करने लगा।

तब उसे स्वप्न में भगवान शिवजी ने दर्शन देकर कहा कि तुम जिस पत्थर को निकालना चाहते हो वो कोई साधारण पत्थर नहीं है, एक शिवलिंग है। मैं स्वयं वहां शिवलिंग के रूप में प्रगट हो रहा हूं। मेरे विचार से तुम्हें उस जगह की खोदाई बंद करके अन्यत्र खोदाई करनी चाहिए। सुबह जब किसान उस जगह पर पुनः खोदाई करने पहुंचा तो उसने देखा कि वह पत्थर पहले दिन से बाहर आ गया था। धीरे-धीरे यह शिवलिंग बाहर निकल आया। शिवलिंग की पूजा-अर्चना प्रारंभ कर दी और गांव वालों के सहयोग से एक छोटा सा मंदिर उस जगह पर बनाकर कुएं को अन्यत्र जगह पर खोदा गया, जो आज भी मौजूद है। वह पुराना छोटा सा शिव मंदिर आज जन सहयोग से बड़ा और भव्य हो चुका है।

शिवलिंग आज जमीन से लगभग 3 फीट ऊपर आ चुका है और इसकी ऊंचाई दिनों दिन बढ़ती ही जा रही है। यहीं मंदिर परिसर में भगवान जगन्नाथ की स्थापना भी की गई है और एक संतोषी माता का मंदिर भी बनवाया गया है।

शिवलिंग का नहीं है कोई ओर छोर- मंदिर के पुजारी बताते हैं कि आज से तकरीबन 30 वर्ष पूर्व 1986 में जब पुराने मंदिर का जीर्णोद्धार करने पूर्व मंदिर को ता़ेडा गया, तब कुछ भक्तों द्वारा शिवलिंग को भूतल से ऊपर उठाकर स्थापना करने के विचार से शिवलिंग को उखाड़ने के लिए उसके चारों ओर खोदाई की गई। लेकिन बहुत गहराई तक खोदने पर भी जब उन्हें शिवलिंग का कोई ओर छोर नजर नहीं आया, तब उन्होंने भगवान शिव से अपने कृत्य पर क्षमा याचना कर शिवलिंग को उखाड़ने के विचार का त्याग किया। मंदिर में जाने के लिए मार्ग नहीं गांव का यह शिव पार्वती मंदिर जितना विख्यात है, उतनी ही समस्याएं भी मौजूद है। जैसे मुख्य मार्ग से बमुश्किल 200 मीटर की दूरी पर स्थित इस मंदिर में जाने के लिए मार्ग नहीं है। लोग आज भी तालाब के किनारे पर चलकर मंदिर पहुंचते हैं। मंदिर प्रांगण में भक्तों को पेयजल नहीं मिलता, भक्तों के ठहरने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। -


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