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जाने क्‍या है शिव के अर्द्धनारीश्‍वर रूप का सत्‍य

सृष्टि में नर और नारी की समानता का प्रतीक है भगवान शिव का अर्द्धनारीश्‍वर स्‍वरूप। जानें उसके पीछे की कहानी।

By Molly SethEdited By: Published: Tue, 14 Nov 2017 01:38 PM (IST)Updated: Mon, 11 Feb 2019 09:33 AM (IST)
जाने क्‍या है शिव के अर्द्धनारीश्‍वर रूप का सत्‍य
जाने क्‍या है शिव के अर्द्धनारीश्‍वर रूप का सत्‍य

ब्रह्मा की समस्‍या 

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कहते हैं जब सृष्टि की संरचना के बाद ब्रह्मा जी ने मनुष्‍य का र्निमाण किया तो उन्‍हें समझ आया कि ये तो एक शीघ्र अंत होने वाली रचना है क्‍योंकि उन्‍होंने सिर्फ पुरुष बनाये। सृष्टि को चलाने के लिए संतति की आवश्‍यकता है और उसके लिए स्‍त्री की, पर वो है ही नहीं। तब अपनी समस्या के समाधान के लिए वो शिव की शरण में पहुंचे और कठोर तप किया। ब्रह्मा की कठोर तपस्‍या से शिव प्रसन्न हुए और उनकी समस्या के हल के फल में उन्‍होंने अपना अर्धनारीश्वर स्वरूप प्रगट किया। इस रूप में वे आधे शिव थे और आधे शिवा। इस तरह उन्‍होंने मानव को प्रजनन शील बनने क प्रेणना देकर सृजन का संदेश दिया।

स्‍त्री पुरुष समानता

इसके साथ ही उन्होंने अपने इस रूप से पुरूष और स्त्री की समानता के महत्व का भी उपदेश दिया। उन्‍होंने बताया कि स्‍त्री और पुरुष दोनों पकृति का अभिन्‍न अंग हैं और एक के बिना भी इसका विकास संभव नहीं है। अर्धनरनारीश्वर की आराधना का अर्थ है शिव अर्थात पुरुष और स्त्री  यानि शक्‍ति का एका होना। 

क्‍या है शिव और शक्‍ति का संबंध

शक्ति शिव की अभिभाज्य अंग हैं, यदि शिव नर के प्रतीक हैं तो शक्‍ति नारी की। वे एक दुसरे के पूरक हैं। शिव के बिना शक्‍ति का अथवा शक्‍ति के बिना शिव का कोई अस्तित्व नहीं है। शिव अकर्ता हैं, यानि वे संकल्प मात्र करते हैं, संकल्प सिद्धी शक्ति ही करती हैं। अगर शिव कारण हैं तो शक्‍ति कारक हैं, शक्‍ति जागृत अवस्था हैं जबकि शिव सुशुप्तावस्था। शक्‍ति मस्तिष्क हैं और शिव हृदय हैं। 


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