Karwa Chauth Fast Breaking Time: कब किया जाता है करवा चौथ का उद्यापन, क्यों की जाती है इस दिन गणेश जी की आराधना
Karwa Chauth 2020 Udyapan 4 नवम्बर को पूरे देश में करवा चौथ मनाया जाएगा। यह त्योहार राजस्थान उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश और पंजाब समेत कई राज्यों में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं सज संवरकर चंद्रमा की पूजा करती हैं।
Karwa Chauth 2020 Udyapan: 4 नवम्बर को पूरे देश में करवा चौथ मनाया जाएगा। यह त्योहार राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और पंजाब समेत कई राज्यों में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं सज संवरकर चंद्रमा की पूजा करती हैं। करवा चौथ के दिन सोलह श्रृंगार का विशेष महत्व होता है। हिंदू पंचांग के अनुसार करवाचौथ का व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को रखा जाता है। ये व्रत सुहागिन औरतें अपने पति की लंबी आयु की कामना के लिए रखती हैं।
ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि ने बताया कि करवा चौथ की पूजा से पहले और बाद में भजन-कीर्तन करें। इससे वातावरण में सकारात्मकता आती है और पूजन का पूर्ण फल मिलता है।इस बार करवा चौथ 4 नवंबर को है। कहा जाता है कि इस दिन महिलाओं को सोलह श्रृंगार करके ही पूजा में शामिल होना चाहिए। इनमें मेंहदी, चूड़िया, मांग टीका के अलावा और भी चीजों को सोलह श्रृंगार में शामिल किया है। करवा चौथ' का त्यौहार हिन्दुओं का प्रसिद्द त्यौहार है। यह हिन्दू कैलेण्डर के अनुसार कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस दिन को 'गणेश चतुर्थी' भी कहते हैं।
मान्यता है कि अपने प्रिय पुत्र श्री गणेश को विशेष दर्जा दिलाने के लिए मां पार्वती ने शिव से प्रार्थना की थी। भगवान् शिव ने मां पार्वती की प्रार्थना स्वीकार कर श्री गणेश को गणों में सबसे पहले पूजा करने का वरदान दिया था। तब से शुभ कार्य होने से पहले श्री गणेश का पूजन किया जाता है। करवा चौथ के चलते बाज़ारों में महिलाओं की खासी भीड़ दिखाई पड़ती है। महिलायें नए कपड़ों को खरीदने साथ ही डिज़ाईनर करवे भी खरीदती हैं। ग्रामीण स्त्रियों से लेकर आधुनिक महिलाओं तक सभी नारियाँ करवाचौथ का व्रत बडी़ श्रद्धा एवं उत्साह के साथ रखती हैं। शास्त्रों के अनुसार यह व्रत कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी के दिन करना चाहिए। पति की दीर्घायु एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन भालचन्द्र गणेश जी की अर्चना की जाती है।
यह व्रत 12 वर्ष तक अथवा 16 वर्ष तक लगातार हर वर्ष किया जाता है। अवधि पूरी होने के पश्चात इस व्रत का उद्यापन (उपसंहार) किया जाता है। जो सुहागिन स्त्रियाँ आजीवन रखना चाहें वे जीवनभर इस व्रत को कर सकती हैं। इस व्रत के समान सौभाग्यदायक व्रत अन्य कोई दूसरा नहीं है। अतः सुहागिन स्त्रियाँ अपने सुहाग की रक्षार्थ इस व्रत का सतत पालन करें।