क्या आप जानते हैं दिल्ली और ईद उल फितर का है गहरा रिश्ता
जीहां भारत में ईद मनाये जाने का इतिहास देश की राजधानी दिल्ली से गहरा जुड़ा है। एक दौर था जब दिल्ली से चांद की तस्दीक आने से पहले ईद नहीं होती थी।
कब मनेगी ईद दिल्ली से पैगाम आयेगा
ईस्लामी कलैंडर के दसवें महीने के चांद की पहली तारीख को मनाया जाता है ईद उल फितर, ये पर्व चांद के दीदार के बाद ही मनाया जाता है। क्या आप जानते हैं कि एक दौर था जब इस बात का एलान की ईद उल फितर किस दिन होगी ये दिल्ली से खबर आने के बाद ही हो पाता था। पुराने समय में टेक्नोलॉजी का इतना विस्तार नहीं था। हर कोई चांद देखने की भरपूर कोशिश करता था। चांद दिखने के बाद ही ईद मनाई जाती है। ऐसे में लोग इसकी तस्दीक के लिए दिल्ली जाते थे। और वहां से चांद की तस्दीक होना लिखवाकर लाते थे। तब ईद का ऐलान होता था और ईद का त्योहार मनाया जाता था। दिल्ली में जामा मस्जिद के शाही इमाम या दूसरे आलिम-ए-दीन चांद की तस्दीक होना लिखकर देते थे। फिर चांद कमेटी की बैठक के बाद चांद के दीदार और ईद का ऐलान किया जाता था।
नगाड़ा बजाकर होता था इस खुशी का एलान
तब क्योंकि ना फोन थे, ना लाउड स्पीकर और ना ही इंटर नेट, ऐसे में जब कभी-कभी चांद दिखते दिखते सुबह हो जाती थी, तब लोगों को ईद की खबर नगाड़ा बजाकर दी जाती थी। शहर के कुछ जिम्मेदार लोग रिक्शे में बैठकर नगाड़ा बजाकर गली-गली घूमते थे और ईद का ऐलान करते जाते थे। यह खबर सुनते ही लोग ईद की तैयारियों में जुट जाते थे, और ईद का जश्न शुरू होता था। बताते हैं कि रमजान के चांद के लिए तो फिर भी 3-4 लोगों की गवाही से ही काम चल जाता था, लेकिन ईद का चांद दिखा है इसके लिए 8 से 10 लोगों की गवाही और सूचना के बाद उसको ही सच माना जाता था।