Move to Jagran APP

जानिए,संकटों का हरण करने वाली संकष्टी गणेश चतुर्थी का महत्व

माघ मास में पडऩे वाले विविध पर्वों में संकष्टी चतुर्थी एक पौराणिक पर्व है। इसे बोलचाल की भाषा में संकट चौथ’ या सकट’ के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन चौथ माता (पार्वती) और विघ्नहर्ता गणेश की विधि-विधान से आराधना करने की लोक परंपरा है।

By Jeetesh KumarEdited By: Published: Tue, 18 Jan 2022 07:16 PM (IST)Updated: Wed, 19 Jan 2022 05:00 AM (IST)
जानिए,संकटों का हरण करने वाली संकष्टी गणेश चतुर्थी का महत्व
जानिए,संकटों का हरण करने वाली संकष्टी गणेश चतुर्थी का महत्व

माघ मास में पडऩे वाले विविध पर्वों में संकष्टी चतुर्थी एक पौराणिक पर्व है। इसे बोलचाल की भाषा में 'संकट चौथ’ या 'सकट’ के नाम से भी जाना जाता है। भारतीय पंचांग के अनुसार हर माह में दो चतुर्थी तिथि आती हैं। पहली शुक्ल पक्ष में जिसे 'विनायकी चतुर्थी’ कहा जाता है दूसरी कृष्ण पक्ष में जिसे 'संकष्टी चतुर्थी’ कहते हैं। इन चतुर्थी पर्वों में माघ मास के कृष्ण पक्ष की संकष्टी चतुर्थी का विशेष महत्व है। संकटों का हरण करने वाली इस चतुर्थी पर्व को 'माघी चतुर्थी’ और 'तिलकुट चौथ’ नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रीय मान्यता है कि इस निर्जला व्रत का अनुष्ठान सर्वप्रथम मां पार्वती ने अपने पुत्र गणेश की मंगलकामना के लिए किया था। तभी से हिंदू धर्म की महिलाएं अपनी संतान की दीर्घायु और खुशहाल जीवन की कामना के साथ यह व्रत रखती आ रही हैं। इस दिन चौथ माता (पार्वती) और विघ्नहर्ता गणेश की जल, अक्षत, दूर्वा, लड्डू, पान व सुपारी से विधि-विधान से आराधना करने की लोक परंपरा है।

loksabha election banner

कहा जाता है कि श्रीकृष्ण की सलाह पर धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने जीवन के संकटों को दूर करने के लिए इस व्रत को किया था। शास्त्रीय विवरणों के मुताबिक मोदक भगवान गणेश का सर्वाधिक प्रिय व्यंजन है। शंकर सुवन भवानी नंदन को सामान्यतौर पर बेसन और मोतीचूर के लड्डू का भोग लगाया जाता है लेकिन संकष्टी चतुर्थी पर उन्हें तिल के लड्डू चढ़ाए जाते हैं। दरअसल, इस प्राचीन परंपरा के पीछे आस्था और आहार का एक सुनियोजित विज्ञान समाहित है। धर्म शास्त्रों में तिल को देवान्न की संज्ञा दी गयी है। मत्स्य, पद्म और ब्रहन्नारदीय पुराण में तिल से जुड़े पाशुपत, सौभाग्य और आनंद व्रत बताये गये हैं। शिव पुराण में तिल दान और तिल मिश्रित जल के स्नान से शारीरिक, मानसिक और वाचिक पापों से मुक्ति मिलने की बात कही गयी है।

जानना दिलचस्प है कि इस देवान्न की वैज्ञानिक उपयोगिता भी परीक्षणों में साबित हो चुकी है। तिल एक बेहतरीन एंटीआक्सीडेंट है। साथ ही इसमें कापर, मैग्नीशियम, आयरन, कैल्शियम, फास्फोरस, जिंक, विटामिन और फाइबर भरपूर मात्रा में होता है जो हमारी रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने में अत्यंत सहायक होते हैं। तिल के तेल से मालिश से हड्डियां मजबूत होती हैं और त्वचा में चमक आती है। माघ माह में शीत ऋतु होती है, इस तथ्य से हमारे ऋषि-मुनि भलीभांति अवगत थे, इस कारण इस अवधि में पडऩे वाले पर्वों में उन्होंने शरीर को गर्माहट व ऊर्जा देने वाले खाद्य पदार्थों के सेवन की परंपरा बनायी थी। सकट के लोकपर्व पर तिल के लड्डू के प्रसाद के पीछे भी यही वैज्ञानिक आधार है।

                                                                                                             - पूनम नेगी


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.