जाने क्या है भार्इ बहन का त्योहार भैया दूज आैर कैसे होती है पूजा
दीपावली के पांच दिन का त्योहार का अंतिम पड़ाव है ये पर्व भार्इ बहन के प्रेम आैर स्नेह को सर्मपित है।
दीपावली के दो दिन बाद होता है ये पर्व
भ्रातृ द्वितीया (भाई दूज) कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाने वाला पर्व है, इसे यम द्वितीया भी कहते हैं। भाई दूज दीपावली के दो दिन बाद आता है। ये त्यौहार भाई के प्रति बहन के स्नेह को अभिव्यक्त करता है जब वे अपने भाई की खुशहाली के लिए कामना करती हैं। कहते हैं कि कार्तिक शुक्ल द्वितीया को बहन यमुना ने यमराज को अपने घर पर सत्कारपूर्वक भोजन कराया था। उस दिन नारकीय यातना भोग रहे जीवों को कष्ट से छुटकारा मिला और उन्हें तृप्त किया गया। जिससे वे पाप मुक्त होकर सब बंधनों से छुटकारा पा गये।
मोक्ष की होती है प्राप्ति
इसी उपलक्ष्य में सब ने मिलकर एक उत्सव मनाया आैर तभी से यह तिथि तीनों लोकों में यम द्वितीया के नाम से विख्यात हुई। मान्यता है इस दिन जैसे यमुना ने यम को अपने घर भोजन कराया था, उसी तरह जो अपनी बहन के हाथ का उत्तम भोजन करता है उसे उत्तम भोजन समेत धन की प्राप्ति भी होती रहती है। पद्म पुराण के अनुसार कार्तिक शुक्लपक्ष की द्वितीया को पूर्वाह्न में यम की पूजा करके यमुना में स्नान करने वाला मनुष्य यमलोक को नहीं देखता अर्थात उसको मुक्ति प्राप्त हो जाती है।
बहन के घर करें भोजन
शास्त्रों के अनुसार इस तिथि को अपने घर मुख्य भोजन नहीं करना चाहिए। उन्हें अपनी बहन के घर जाकर उन्हीं के हाथ से बने हुए भोजन को स्नेह पूर्वक ग्रहण करना चाहिए तथा जितनी बहनें हों उन सबको पूजा और सत्कार के साथ विधिपूर्वक वस्त्र, आभूषण आदि देना चाहिए। सगी बहन के हाथ का भोजन उत्तम माना गया है। उसके अभाव में किसी भी बहन के हाथ का भोजन करना चाहिए। यदि अपनी बहन न हो तो अपने चाचा या मामा की पुत्री को या माता पिता की बहन को या मौसी की पुत्री या मित्र की बहन को भी बहन मानकर ऐसा करना चाहिए।
भार्इ का सत्कार करें बहनें
वहीं बहन को भी चाहिए कि वह भाई को आसन पर बिठाकर उसके हाथ-पैर धुलाये। गंधादि से उसका सम्मान करे और दाल-भात, फुलके, कढ़ी, सीरा, पूरी, चूरमा अथवा लड्डू, जलेबी, घेवर आदि जो भी उपलब्ध हो सामर्थ्य के अनुसार उत्तम पदार्थों का भोजन कराये। भाई-बहन को अन्न, वस्त्र आदि देकर उससे शुभाशीष प्राप्त करे।
एेसे करें टीका
भार्इ को टीका लगाने के लिए मोढ़ा, पीढ़ा या पटरे पर चावल के घोल से पांच शंक्वाकार आकृति बनाई जाती है। उसके बीच में सिंदूर लगा दिया जाता है। स्वच्छ जल, 6 कुम्हरे के फूल, सिंदूर, 6 पान के पत्ते, 6 सुपारी, बड़ी इलायची, छोटी इलाइची, हर्रे, जायफल आदि पूजा में रखे जाते हैं। कुम्हरे का फूल नहीं होने पर गेंदा का फूल भी ले सकते हैं। अब बहन भाई के पैर धुलाये, इसके बाद आसन पर बिठाये और अंजलि-बद्ध होकर भाई के दोनों हाथों में चावल का घोल एवं सिंदूर लगाये। हाथ में शहद, गाय का घी, चंदन लगा दें। इसके बाद भाई की अंजलि में पान का पत्ता, सुपारी, कुम्हरे का फूल, जायफल इत्यादि दें। साथ में इस बात को दोहरायें कि "यमुना ने निमंत्रण दिया यम को, मैं निमंत्रण दे रही हूं अपने भाई को; जितनी बड़ी यमुना जी की धारा, उतनी बड़ी मेरे भाई की आयु।" यह कहकर अंजलि में जल डाल दें। एेसा तीन बार करें, आैर फिर जल से भार्इ के हाथ-पैर धुला कर पोंछ दें। अब टीका लगा दें। इसके बाद भुना हुआ मखाना खिलायें। टीके बाद भाई-बहन को अपनी सामर्थ्य के अनुसार उपहार दें। पूजन के बाद बहने उत्तम पदार्थों का भोजन करायें।