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Ornaments of Lord Shiva: जानिए, भगवान शिव के आभूषण और उनके रहस्य के बारे में

Ornaments of Lord Shiva भगवान शिव आभूषण के रूप में त्रिनेत्रडमरू त्रिशूल सर्प की माला और नंदी की सवारी को धारण करते हैं। भगवान शिव के इन आभूषणों को धारण करने के पीछे कुछ पौराणिक कथाएं और मान्यताएं भी हैं। आइए जानते हैं उनके बारे में....

By Jeetesh KumarEdited By: Published: Sat, 31 Jul 2021 05:50 PM (IST)Updated: Sat, 31 Jul 2021 05:50 PM (IST)
Ornaments of Lord Shiva: जानिए, भगवान शिव के आभूषण और उनके रहस्य के बारे में
जानिए, भगवान शिव के आभूषण और उनके रहस्य के बारे में

Ornaments of Lord Shiva: भगवान शिव की पूजा अनादि काल से न शिवलिंग के रूप में होती आरही है। शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव संसार में सबसे पहले अपने निराकार रूप में ही प्रकट हुए। जो कि एक बहुत विशाल ज्योर्तिलिंग ही था। लेकिन जब उन्होंने साकार रूप धारण किया तो उनके आभूषण के रूप में त्रिनेत्र, हाथों में डमरू और त्रिशूल, गले में सर्प की माला और नंदी की सवारी को स्वीकार किया। भगवान शिव इन आभूषणों को धारण करने के पीछे कुछ पौराणिक कथाएं और मान्यताएं भी हैं। आइए जानते हैं उनके बारे में....

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त्रिनेत्र -

भगवान शिव के मस्तक के मध्य भाग में सुशोभित तीसरा नेत्र अलौकिक है। ये नेत्र संसार और काल के परे का बोध कराता है।पौरणिक मान्यता है कि भगवान शिव का यह तीसरा नेत्र सृष्टि में प्रलय उत्पन्न कर सकता है। ये असीम शक्ति और ऊर्जा का भण्डार है। अपने इस तीसरे नेत्र के कारण ही भगवान शिव को त्रयंबक भी कहा जाता है।

चंद्रमा -

भगवान शिव अपने शिखर पर चंद्रमा को भी स्थान प्रदान करते है इस कारण ही उन्हें चन्द्रशेखर भी कहा जाता है। पुराणों के अनुसार जब चंद्रमा दक्ष प्रजापति के श्राप के कारण कलंकित हो गए थे। तो भगवान शिव ने चंद्रमा की तपस्या से प्रसन्न हो कर उन्हें अपने शीश पर धारण किया और उनका कलंक दूर हुआ।

सर्प -

भगवान शिव नाग वासुकी को अपने गले में स्थान प्रदान करते हैं। इसके आलावा भी अनेकों सर्प और विषैले जीव जन्तु उनमें अपना आश्रय पाते हैं। संमुद्र मंथन में विष का पान करने कारण उन्हें विषधर भी कहा जाता है। शंकर जी के गले में लिपटे हुए सर्प को कुंडलनी का प्रतीक माना जाता है। जो गले में स्थित विशुद्धि चक्र को हानिकारक प्रभावों से बचाता है।

त्रिशूल -

भगवान शिव अपने हाथ में त्रिशूल धारण करते हैं। त्रिशूल के तीनों शूलों की ऋषि-मुनी अलग-अलग व्याख्या करते हैं। कुछ विद्वान इसे सत्, रज और तम् गुणों का प्रतीक मानते हैं तो कुछ तीन कालों का और कुछ पिण्ड, ब्रह्माण्ड़ और परम् तत्व का प्रतीक मानते हैं।

नंदी -

शंकर जी नंदी बैल को अपने वाहन के रूप में स्वीकार करते हैं। नंदी का सभी शिवगणों में प्रथम स्थान है। नंदी को स्थिरता और सजगता का प्रतीक माना जाता है। प्रत्येक शिव मंदिर में नंदी मंदिर के बाहर स्थिर रूप में स्थित रहते हैं।

डिसक्लेमर

'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'


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