शिव भरोसे केदार धाम सुरक्षा
मानसून की दस्तक के साथ ही महादेव की स्थली केदारनाथ मंदिर की सुरक्षा का सवाल खड़ा हो गया है। आपदा के दौरान मंदिर एक बड़े बोल्डर की वजह से भले ही बचा, लेकिन मंदिर के पीछे मैदान बोल्डरों से अटा पड़ा है। आपदा के बाद सालभर से यादा वक्त गुजरने पर भी सुरक्षा को लेकर न तो रणनीति है और न ही ठोस कार्यय
देहरादून [रविंद्र बड़थ्वाल]। मानसून की दस्तक के साथ ही महादेव की स्थली केदारनाथ मंदिर की सुरक्षा का सवाल खड़ा हो गया है। आपदा के दौरान मंदिर एक बड़े बोल्डर की वजह से भले ही बचा, लेकिन मंदिर के पीछे मैदान बोल्डरों से अटा पड़ा है। आपदा के बाद सालभर से यादा वक्त गुजरने पर भी सुरक्षा को लेकर न तो रणनीति है और न ही ठोस कार्ययोजना। इस बरसात में भी केदार भूमि भगवान शिव के भरोसे है। इसके साथ ही केदारनाथ धाम से तबाही के निशान कब तक मिटेंगे और पुराना वैभव लौटेगा या नहीं, इन सवालों को एक साल से लंबा अरसा गुजरने के बाद भी जवाब का इंतजार है।
केदारनाथ मंदिर समेत पूरा धाम ही खतरे के मुहाने पर है। यह दीगर बात है कि सियासी फेर में असलियत से मुंह चुराने की कोशिश की जा रही है। इन्हीं कोशिशों से मुंह ढांपते-ढांपते मानसून ने दस्तक दे दी है। केदार धाम जिस मौजूदा हाल में है, ऐसे में अतिवृष्टि ने फिर रौद्र रूप दिखाया तो मंदिर की सुरक्षा को खतरा उत्पन्न हो सकता है। बीते वर्ष जल प्रलय के रूप में आई आपदा में चौराबाड़ी लेशियर टूट गया। इसके मलबे के रूप में बड़े-बड़े बोल्डर मंदिर के पीछे ही एक किमी तक बिखरे हुए हैं। यह भी सच है कि एक शिला सरीखे पत्थर के बड़े बोल्डर ने केदारनाथ मंदिर को आपदा के कहर से बचाने में अहम भूमिका निभाई, लेकिन आसपास फैले बोल्डर को हटाने और इसके लिए मंदिर के पीछे दूरदराज हिस्से से यह कार्य शुरू करने को लेकर कोई तैयारी नहीं की गई है। इसमें शक नहीं कि इन बोल्डर और मलबे के साथ बगैर भू-वैज्ञानिक अध्ययन के छेड़छाड़ नहीं की जा सकती।
भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण संस्थान बीते वर्ष आई आपदा पर अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट सरकार को भी सौंप चुका है। केदार धाम में मलबे को लेकर अध्ययन चल भी रहा है। इसके बावजूद बीते वर्ष जैसे हालत पैदा हुए तो इससे निपटने की कार्ययोजना तैयार ही नहीं हो सकी है। केदार धाम में तकरीबन एक किमी की दूरी पर मंदाकिनी नदी को चैनलाइज करने को 60 मीटर की बाढ़ सुरक्षा दीवार बनाई गई। इससे मंदाकिनी नदी का पुराना प्रवाह लौटाया गया है। केदारनाथ मंदिर के पीछे मंदाकिनी नदी के साथ ही सरस्वती नदी और चौराबाड़ी तक बड़ा हिस्सा असुरक्षित ही है।
केदारनाथ यात्र शुरू होने मात्र से ही देश-विदेश में महादेव के भक्तों की आस्था की लाज बच सकेगी अथवा यात्रा से जुड़े लोगों की आर्थिकी की टूटी कमर को सहारा मिलेगा, ऐसा मानकर प्रदेश सरकार अपना गाल भले ही बजाए लेकिन हकीकत कुछ और ही है। तबाही के ढेरों निशां यहां-वहां बिखरे पड़े हैं। बोल्डरों के साथ ही आपदा से तबाह हुए भवनों के ध्वस्तीकरण पर भी फैसला नहीं लिया जा सका है। ऐसे में तबाही का मंजर लिए केदार धाम का पुराना वैभव लौटेगा, इस पर संदेह बना हुआ है।