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काशीवासियों के हृदय में बसते हैं शिव तो मन में बसते राम

उत्सवों के रसिया बनारसी मन में अपने काशीपुराधिपति का जितना मान है , उतना ही अवधपति भगवान श्रीराम का भी स्थान है। राग विराग से दूर संत भले शैव-वैष्णव के दो धड़े में आते हैं लेकिन बात जब बाबा के हृदयवासी भगवान की हो तो काशीवासियों के लिए सारे भेद

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 15 Dec 2015 02:45 PM (IST)Updated: Tue, 15 Dec 2015 02:49 PM (IST)
काशीवासियों के हृदय में बसते हैं शिव तो मन में बसते राम

वाराणसी । उत्सवों के रसिया बनारसी मन में अपने काशीपुराधिपति का जितना मान है , उतना ही अवधपति भगवान श्रीराम का भी स्थान है। राग विराग से दूर संत भले शैव-वैष्णव के दो धड़े में आते हैं लेकिन बात जब बाबा के हृदयवासी भगवान की हो तो काशीवासियों के लिए सारे भेद धरे रह जाते हैं। वसंत पंचमी, महाशिवरात्रि व रंगभरी एकादशी पर बड़े भाव से बाबा की छेकइया, विवाहोत्सव और द्विरागमन की रस्म निभाते हैं तो मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी पर सारे विधान मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम हो जाते हैं। श्रद्धालुओं की नगरी में श्रद्धा का रंग तो होगा ही, सीताराम विवाह पंचमी पर बिटिया और बेटे के विवाह की तरह उत्साह-उल्लास में भी डूबते उतराते हैं।

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श्रीराम भक्ति की सगुण व निगरुण धारा की संगम स्थली में इसके रंग निखरने लगे हैं। विश्वास न हो तो रामजी से जुड़े मठ- मंदिरों का तनिक एक फेरा मात्र लगाइए, बेशक तैयारियों का हाल देख विभोर हो जाएंगे। दावा है नास्तिक हुए तब भी इसे कुछ और नाम देना भूल, आस्था के सागर में बरबस ही उतरते चले जाएंगे। सोमवार का हाल, अभी शुभ घड़ी दो दिन आगे खड़ी लेकिन अस्सी स्थित रामजानकी मठ में भागदौड़ ऐसी मानो, बरात अब-तब दरवाजे पर आ चढ़ी। प्रभारी रामलोचन दास फूल साज पर पिल पड़े हैं-दरवाजा रच रच सजाना है, मंडवा त्रेता जैसे रंग में ही आना है। कैटरिंग वाले को सूची सौंप दी गई है, अंगुलियां चाट लें बराती, खाना ऐसा ही बनाना है। लाइट-बैंड और बग्घी वाले को ताकीदी काल यह कि बरात समय पर लगाना है। इसे राजा दशरथ भी रश्क खा जाएं, इस तरह सजाना है। एक सुर में कन्या व वर पक्ष की तैयारियों को सुन भले कोई गच्चा खा जाए लेकिन समझ जाए कि बनारसी मन में राम और सिया दोनों के प्रति समान श्रद्धा शुमार है। मंगलवार को चतुर्थी पर बिटिया सीता के मटकोर की तैयारी है। पंचमी की शाम बड़े शान से बरात सजाएंगे और खुद जनवासा भी लगाएंगे। रात में मंडप में दोनों पक्ष विराजेंगे, बिटिया का लावा परछन से लेकर कन्यादान तक की रस्म निभाएंगे। अगली शाम रामकलेवा की पंगत जमेगी।

परिधान -आभूषणों से लदी महिलाएं ढोलक की थाप पर गारी-सोहर गाएंगी और नवयुगल पर वारी जाएंगी। इसके लिए अलग अलग अवसर के लिए साड़ियां चूज की जा रही हैं, आमतौर पर विवाह प्रयोजन वाले घर की महिलाओं के एक विवाह में वस्त्र प्रदर्शन के तीन-चार मौके होते होंगे लेकिन यहां तो बारी-बारी से दो रूपों में दर्शन होंगे। कुछ ऐसी ही रंगत व उत्साही पंगत रामजानकी मंदिर खोजवां, राम जानकी मठ (राजादरवाजा), तपोवन आश्रम नक्खीघाट, श्रीरामतारक आंध्रा आश्रम (मानसरोवर) समेत अन्य मंदिरों में भी होगी। इससे भी कहीं आगे रामनगर स्थित मंदिर में चारों भाइयों की कोहबर झांकी मन मोह लेगी।

वास्तव में सदियों पुराना नाता है यह, काशी ने बाबा से आराध्य के साझा रिश्ते वाले प्रभु श्रीराम को रोम-रोम में बसाया। राम पूजन को जनांदोलन का रूप दिया तो काशी के मठों ने इसे निरंतर आगे बढ़ाया।


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