करवा चौथ 2018: जानें क्या क्या होना जरूरी है आपकी थाली में
करवा चौथ के व्रत की तरह ही करवा पूजा की थाली भी विशेष होती है। पंडित दीपक पांडे से जानें कि इस थाली में क्या क्या होना चाहिए।
प्यार से करें तैयार करवा चौथ की पूजा थाली
सौभाग्य प्रदान करने वाले सुहागिन महिलाआें के विशेष व्रत करवा चौथ में पूजा की थाली का भी विशेष महत्व होता है। अब तो इस अवसर पर बेह सुंदर थालियां सजा कर पूजा करने का प्रचलन आ गया है। यदि आपके पास थाली सजाने का समय नहीं है तो बाजार से सजी सजायी थाली भी ला सकती हैं। थाली थोड़े बड़े आकार की लें तो अच्छा है क्योंकि इसमें काफी सारी चीजें रखनी होती हैं जो पूजा के समय चाहिए। साथ ही कर्इ जगह पर थाली पूजा के दौरान थाली बदलने या फिराने की रस्म भी होती है। बड़ी थाली में सब साम आसानी से रखा जा सकता है उसके गिरने का डर नहीं रहता। थाली में सही तरीके चार पांच दिये नुमा सकोरे रखें आैर चीजें। रोली, अक्षत, सिंदूर, दही, आदि रखें। इसके अलावा आपकी थाली में मौलि, शुद्घ घी का दिया, फूल, जल का लोटा, बायने के लिए फीकी आैर मीठी मठ्ठी, करवा, मिठार्इ, मेंहदी का कोन, चलनी, आैर दूध का कलश या गिलास भी होना चाहिए। इसके साथ ही अपने परिवार की परंपरा के अनुसार महावर, कंघा, बिंदी, चुनरी, चूड़ी, आैर बिछुआ जैसी श्रंगार की सामग्री भी रख सकती हैं।
एेसे करें करवा चौथ की पूजा
कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाने वाला पर्व करवा चौथ भारत में सौभाग्यवती महिलाआें का प्रमुख त्योहार है। यह व्रत सुबह सूर्योदय से पूर्व प्रात: 4 बजे प्रारंभ होकर रात में चंद्रमा दर्शन के बाद पूर्ण होता है। किसी भी आयु, जाति, वर्ण, संप्रदाय की स्त्री को इस व्रत को करने का अधिकार है। अपने पति की आयु, स्वास्थ्य व सौभाग्य की कामना से स्त्रियां इस व्रत को करती हैं । इस वर्ष ये पर्व शनिवार 27 अक्टूबर 2018 को पड़ रहा है। इस दिन श्री गणेश की पूजा विशेष रूप से की जाती है। करवाचौथ में भी संकष्टी या गणेश चतुर्थी की तरह दिन भर उपवास रखकर रात में चन्द्रमा को अर्घ्य देने के बाद भोजन करने का विधान है।
करवा चौथ की एक कथा
कहते हैं कि स्वयं शंकर जी ने माता पार्वती को करवा चौथ के व्रत की ये कथा सुनाते हुए इस उसका महत्व समझाया था। इस व्रत को करने से स्त्रियां अपने सुहाग की रक्षा हर आने वाले संकट से वैसे ही कर सकती हैं जैसे एक ब्राह्मण ने की थी। प्राचीनकाल में एक ब्राह्मण था। उसके चार लड़के एवं एक गुणवती लड़की थी। एक बार लड़की मायके में थी, तब करवा चौथ का व्रत पड़ा। उसने व्रत को विधिपूर्वक किया। पूरे दिन निर्जला रही। कुछ खाया-पीया नहीं, पर उसके चारों भाई परेशान थे कि बहन को प्यास लगी होगी, भूख लगी होगी, पर बहन चंद्रोदय के बाद ही जल ग्रहण करेगी। भाइयों से न रहा गया, उन्होंने शाम होते ही बहन को पीपल की पेड़ पर छलनी लेकर दीपक जलाया आैर नकली चंद्रोदय कर के बहन को आवाज दी कि देखो चंद्रमा निकल आया है, पूजन कर भोजन ग्रहण करो। बहन ने पूजा की आैर भोजन ग्रहण कर लिया।
भोजन ग्रहण करते ही उसके पति की मृत्यु हो गई। वह दुःखी हो विलाप करने लगी। उसी समय वहां से इंद्र की पत्नी इंद्राणी निकल रही थीं। उनसे उसका दुःख न देखा गया। ब्राह्मण कन्या ने उनके पैर पकड़ लिए और अपने दुःख का कारण पूछा, तब इंद्राणी ने बताया कि उसने बिना चंद्र दर्शन किए करवा चौथ का व्रत तोड़ दिया इसलिए यह कष्ट मिला है। अगर वो वर्ष भर की चौथ का व्रत नियमपूर्वक करे तो उसका पति जीवित हो जाएगा। उसने इंद्राणी के कहे अनुसार चौथ व्रत किया तो पुनः सौभाग्यवती हो गई। इसलिए प्रत्येक स्त्री को अपने पति की दीर्घायु के लिए यह व्रत करना चाहिए। तभी से हिन्दू महिलायें अपने अखंड सुहाग के लिए करवा चौथ व्रत करती हैं।