कान्हा संग होली खेलने को उतावलीं निराश्रित विधवाएं
सूने जीवन में यदि रंग भर दिए जाएं, तो निश्चित रूप से उसमें निखार आ जाएगा। रंगों की बहार से किसी वस्तु में जीवंतता आ जाती है, तो फिर ये तो इंसान हैं। इनमें सोचने-समझने के सारे गुण विद्यमान हैं। इन्हीं सैकड़ों विधवाओं और निराश्रित महिलाओं के जीवन में सुलभ
वृंदावन। सूने जीवन में यदि रंग भर दिए जाएं, तो निश्चित रूप से उसमें निखार आ जाएगा। रंगों की बहार से किसी वस्तु में जीवंतता आ जाती है, तो फिर ये तो इंसान हैं। इनमें सोचने-समझने के सारे गुण विद्यमान हैं। इन्हीं सैकड़ों विधवाओं और निराश्रित महिलाओं के जीवन में सुलभ इंटरनेशनल ने कुछ ऐसे ही रंग भरने का प्रयास पिछले दो सालों से किया है। अब ये सभी अपने कान्हा के संग होली खेलने को बेताब है।
पश्चिम बंगाल और उड़ीसा प्रांतों से अपनों के तिरस्कार से परेशान हो सैकड़ों विधवाएं और निराश्रित महिलाएं वृंदावन धाम में रहती हैं। ये सभी मीरा सहभागिनी आश्रय सदन समेत अनेक स्थानों पर बने आश्रमों में रहकर कान्हा की भक्ति कर अपना जीवन यापन कर रही हैं। लेकिन इनके जीवन में खुशी भरने की शुरूआत दो साल पहले सुलभ इंटरनेशनल के अध्यक्ष विंदेश्वरी पाठक ने की।
वर्ष 2013 में मीरा सहभागिनी आश्रय सदन में सुलभ के सहयोग से कान्हा के संग विधवाओं ने फूलों की होली खेली, जबकि बीते वर्ष 2014 में विधवाओं ने बाकायदे पिचकारी चलाकर एक-दूसरे को रंगों से सराबोर किया।
विधवा सुबोधा सेन कहती हैं कि भगवान श्रीकृष्ण तो नित्य निरंतर राधाजी के साथ यहां लीलाएं करते हैं, होली खेलते हैं। वह तो वर्ष में केवल एक बार अपने प्रभु के साथ होली खेलना चाहती हैं।
विधवा पारुल दासी कहती हैं कि श्रीकृष्ण की नगरी में रहना सौभाग्य की बात है और इससे बड़ी बात उनके संग होली खेलना है। वह उत्सुक हैं कि कान्हा के संग कब होली खेलें।