यह श्राद्ध जीवित श्राद्ध कहलाता है
आश्रि्वन कृष्ण द्वादशी शनिवार (20 सितंबर) 17 दिवसीय गया श्राद्ध का तेरहवां दिवस है। इस तिथि को भीम गया, गोप्रचार एवं गदालोल तीर्थ में श्राद्ध होता है। पांडव भीमसेन ने गया में आकर पिंडदान किया था। उक्त स्थान भीम गया के नाम से प्रसिद्ध है। भीम गया वेदी से ऊपर पश्चिम दिशा में पुण्डरीकाक्ष विष्णु है। बायां घुटना को भीतर की ओर मोड़कर उन्होंने श्रद्ध
आश्रि्वन कृष्ण द्वादशी शनिवार (20 सितंबर) 17 दिवसीय गया श्राद्ध का तेरहवां दिवस है। इस तिथि को भीम गया, गोप्रचार एवं गदालोल तीर्थ में श्राद्ध होता है। पांडव भीमसेन ने गया में आकर पिंडदान किया था। उक्त स्थान भीम गया के नाम से प्रसिद्ध है। भीम गया वेदी से ऊपर पश्चिम दिशा में पुण्डरीकाक्ष विष्णु है।
बायां घुटना को भीतर की ओर मोड़कर उन्होंने श्रद्ध के बाद विष्णु का नमस्कार किया था। पत्थर पर उनके बायें घुटने का गहरा निशान है। पुण्डरीकाक्ष विष्णु पूर्व मुख हैं। पश्चिम मुख होकर उनका नमस्कार भीमसेन ने किया था। पुण्डरीकाक्ष विष्णु मंदिर से पश्चिम अधिक ऊंचाई पर जनार्दन विष्णु का मंदिर है। यहां दही एवं अक्षत का पिंड विष्णु के दाहिने हाथ में दिया जाता है। इसमें तिल नहीं मिलाया जाता है। यह पिंडदान अपने लिए अथवा किसी जीवित व्यक्ति के लिए होता है। इससे मृत्यु के बाद मुक्ति प्राप्त होती है। यह श्राद्ध जीवित श्राद्ध कहलाता है।
मंगला माता का दर्शन कर के गोप्रचार वेदी पर पिंडदान होता है। यहां ब्रहमा ने गयाधाम में यज्ञ करने के बाद गोदान किया था। इस पर्वतीय भाग पर गाय के खुर का चिन्ह आज भी दर्शनीय है। अंत में गदालोल तीर्थ में श्राद्ध होता है। यहां गदालोल सरोवर है। आदि गदाधर विष्णु ने इस तालाब में गदा धोया था। हेतु नामक राक्षस के वध के लिए विश्वकर्मा ने गद नामक राक्षस की हड्डी स गदा का निर्माण किया था।