कांवड़ यात्रा तो जानते हैं पर क्या जानते हैं कौन था पहला कांवड़िया
कांवड़ यात्रा के बारे में तो हम सभी जान चुके हैं पर क्या आप जानते हैं कि सबसे पहली कांवड़ यात्रा करने वाला यात्री कौन था।
पहला कांवड़िया कौन
सावन का महीना शुरू होने के साथ ही केसरिया कपड़े पहने शिवभक्तों के जत्थे गंगा का पवित्र जल शिवलिंग पर चढ़ाने निकल पड़ते हैं, इन लोगों को कांवड़िया कहा जाता है आैर इनकी पद यात्रा को कांवड़ यात्रा। इस यात्रा का आरंभ कैसे हुआ इसको लेकर अनेक कथायें सुनार्इ जाती हैं। इन कथाआें के अनुसार ही सर्वप्रथम कांवड़ यात्रा करने वाला अर्थात पहला कांवड़िया कौन था इसकी चर्चा होती रहती है। हर कथा के अनुसार पहले कांवड़िया नाम अलग हो जाता है। एेसे में ये तय करना मुश्किल है कि इतिहास का सबसे पहला कांवडिया कौन था। आइये जानते हैं कौन कौन से हैं वो पौराणिक चरित्र जिन को प्रथम कांवड़िया कहा जाता है।
परशुराम सबसे प्रमुख दावेदार
ज्यादातर अध्यात्म के जानकार आैर पौराणिक कथाआें को बताने वालों का मानना है कि सबसे पहले भगवान परशुराम ने उत्तर प्रदेश के बागपत के पास स्थित ‘पुरा महादेव’ का कांवड़ से गंगाजल लाकर जलाभिषेक किया था। परशुराम, इस प्रचीन शिवलिंग का जलाभिषेक करने के लिए गढ़मुक्तेश्वर से गंगा जी का जल लाए थे। आज भी इस परंपरा का अनुपालन करते हुए सावन के महीने में गढ़मुक्तेश्वर से जल लाकर लाखों लोग ‘पुरा महादेव’ का जलाभिषेक करते हैं। गढ़मुक्तेश्वर का एक नाम ब्रजघाट भी है। इस कथा के अनुसार मान्यता है कि परशुराम ही थे प्रथम कांवड़िया।
श्रवण कुमार का भी नाम
ये तो सभी जानते हैं कि त्रेतायुग में श्रवण कुमार ने पहली बार अपने माता को तीर्थ यात्रा कराने के लिए कांवड़ यात्रा की थी। इस यात्रा के दौरान वे हिमाचल के ऊना क्षेत्र में पहुंचे जहां उनके अंंधे माता-पिता ने उनसे मायापुरी यानि वर्तमान हरिद्वार में गंगा स्नान करने की इच्छा प्रकट की। माता-पिता की इस इच्छा को पूरी करने के लिए श्रवण कुमार अपने माता-पिता को कांवड़ में बैठा कर हरिद्वार लाए और उन्हें गंगा स्नान कराया। वापसी में वे अपने साथ गंगाजल भी ले गए। इसे ही कांवड़ यात्रा की शुरुआत माना गया आैर श्रवण कुमार को प्रथम कांवड़िया।
भगवान राम ने किया आरंभ
कुछ मान्यताओं के अनुसार भगवान राम को पहले कांवडियां का स्थान दिया जाता है। कहते हैं कि उन्होंने झारखंड के सुल्तानगंज से कांवड़ में गंगाजल भरकर, बैजनाथ धाम में शिवलिंग का जलाभिषेक किया था।
रावण को भी स्थान मिला है
विद्वानों का कहना है कि पुराणों के अनुसार कावंड यात्रा की परंपरा समुद्र मंथन से जुड़ी है। जिसमें बताया गया है कि समुद्र मंथन से निकले विष को पी लेने के कारण भगवान शिव का कंठ नीला हो गया और वे नीलकंठ हुए, परंतु विष के नकारात्मक प्रभावों ने शिव को घोर कष्ट दिया। शिव को विष के ताप से मुक्त कराने के लिए उनके अनन्य भक्त रावण को बुलाया गया आैर उसने कांवड़ में जल भरकर ‘पुरा महादेव’ स्थित शिवमंदिर में शिवजी का जल अभिषेक किया। तभी कांवड़ यात्रा की परंपरा का प्रारंभ हुआ।
देवताओं के जलाभिषेक से शुरू हुर्इ परंपरा
इसके विपरीत कुछ मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन से निकले हलाहल के प्रभाव को शांत करने के लिए शिवजी ने शीतल चंद्रमा को अपने माथे पर धारण किया आैर सभी देवताआें ने उन पर गंगाजी से जल लाकर अर्पित किया। इस तरह सावन मास में देवताआें ने कांवड़ यात्रा का प्रारंभ किया।