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विसर्जन: मोह से मुक्ति का मार्ग दिखलाता है विसर्जन

विसर्जित भाव ही हमारे मन की असल खुराक है। यह खुराक हमें आंतरिक रूप से परिपक्व बनाती है। स्वयं समाज एवं राष्ट्र का उन्नयन संचय भाव से कदापि नहीं हो सकता। इसके लिए हमें विसर्जन के मर्म को आत्मसात करना होगा।

By Kartikey TiwariEdited By: Published: Wed, 22 Sep 2021 09:19 AM (IST)Updated: Wed, 22 Sep 2021 09:19 AM (IST)
विसर्जन: मोह से मुक्ति का मार्ग दिखलाता है विसर्जन
विसर्जन: मोह से मुक्ति का मार्ग दिखलाता है विसर्जन

हमारे जीवन में विसर्जन का बड़ा महत्व है। जिसके भीतर विसर्जन का भाव जागृत हो गया समझो वह व्यक्ति संत हो गया। विसर्जन हमें मोह से मुक्ति का मार्ग दिखलाता है। हमारी आसक्ति को क्षीण करता है। हमारी लिप्तता पर प्रहार करता है। जब हमारे भीतर मोह पैदा होने लगता है तो हम एक निश्चित दायरे के भीतर सिमटते लगते हैं। हमारी योग्यता पर अंकुश लग जाता है। हमारी क्षमताएं कुंठित होने लगती हैं, परंतु विसर्जन का भाव इन सबसे हमें बाहर खींच ले आता है।

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विसर्जित भाव ही हमारे मन की असल खुराक है। यह खुराक हमें आंतरिक रूप से परिपक्व बनाती है। स्वयं, समाज एवं राष्ट्र का उन्नयन संचय भाव से कदापि नहीं हो सकता। इसके लिए हमें विसर्जन के मर्म को आत्मसात करना होगा। बड़े लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अनेक छोटी उपलब्धियों के मोह को त्यागना होगा। उनके मोहपाश से निकलना होगा।

हमारे ऋषि-मुनि विरक्त एवं विसर्जित भाव से वर्षों तक कठिन तपस्या करते थे। उसके कारण ही उन्हें अनेकों सिद्धियां प्राप्त होती थीं। उनका उपयोग वे लोक कल्याण के लिए करते थे। विसर्जन का भाव लोक कल्याण का कारक भी है। इससे सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय का अनुकरणीय भाव जन्म लेता है।

हम देव पूजन करते हैं। उल्लास एवं उत्सव से उनका आह्वान करते हैं। उन्हें स्थापित करते हैं, लेकिन उनका भी विसर्जन करना पड़ता है। यह यही दर्शाता है कि पूज्य एवं वंदनीय व्यक्ति अथवा वस्तु भी त्याज्य है। त्याग करेंगे तभी अगली बार आह्वान भी होगा। समय की अविरलता इसी विसर्जन से पैदा होती है। विसर्जन हमें जड़वत होने से रोकता है।

देव विसर्जन हमें सुख और दुख, उत्सव और अकाल, आनंद एवं पीड़ा जैसे भावों का दर्शन कराता है। यह यही प्रेरणा देता है कि सुख के आनंद में दुख का स्मरण कर विचलित न होना। अथवा दुख आने पर धैर्य न खोना। दोनों का समान रूप से स्वागत कर समय और परिस्थितियों का सम्मान करना।

ललित शौर्य


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